विदेश की चकाचौंध छोड़ हिमांशु जोशी ने बनाया प्राकृतिक खेती का सफल…

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Krishi Samadhan

विदेश की चकाचौंध छोड़ हिमांशु जोशी ने बनाया प्राकृतिक खेती का सफल

हिमांशु जोशी, एक आईटी प्रोफेशनल से किसान बने व्यक्ति, आज नैनीताल जिले के कोटाबाग में अपने छोटे से फार्म, फॉरेस्ट साइड फार्म पर प्रकृति के साथ एक सार्थक जीवन जी रहे हैं। रामनगर और नैनीताल के बीच बसा यह फार्म उनकी मेहनत, जुनून और सस्टेनेबल खेती के प्रति समर्पण का प्रतीक है।

हिमांशु का बैकग्राउंड आईटी और टेलीकॉम का रहा है। वह ओमान में एक प्रतिष्ठित कंपनी में हेड ऑफ प्रोजेक्ट मैनेजमेंट के पद पर कार्यरत थे। लेकिन 2015 में, जब उनके पिता की तबीयत खराब हुई, हिमांशु ने अपने माता-पिता के साथ समय बिताने का फैसला किया।

“जब मैं छोटा था, मेरे माता-पिता ने मेरी हर मांग पूरी की। अब जब उनको मेरे साथ की जरूरत है तो मुझे अब उनके साथ ही रहकर कुछ अच्छा करना है, मैं अपने करियर की खातिर उन्हें नहीं छोड़ सकता हूँ।”

महज एक हफ्ते में उन्होंने निर्णय लिया और 2016 में भारत वापस आ गए। यह एक ऐसा कदम था, जिसके लिए उन्हें अपने करियर और विदेश की आरामदायक जिंदगी को पीछे छोड़ना पड़ा।

अनजान राह पर कदम

भारत आने के बाद हिमांशु को यह नहीं पता था कि वह क्या करेंगे। 2011 में उन्होंने कोटाबाग में ढाई एकड़ जमीन खरीदी थी, जो उस समय बटाई पर चल रही थी। शुरुआत में उन्होंने बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट और कंसल्टेंसी की कोशिश की, लेकिन जब बात नहीं बनी, तो उन्होंने फार्मिंग को आजमाने का फैसला किया।

पहली फसल के रूप में उन्होंने सरसों बोई। छह महीने बाद, ढाई एकड़ जमीन से उन्हें मात्र 12,000 रुपये की कमाई हुई। मात्र 12,000 रुपये की कमाई ने उन्हें अन्दर से झकझोर दिया, क्या यह रास्ता सस्टेनेबल का है? लेकिन हिमांशु ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक सिद्धांत अपनाया:

“मैं वही खेती करूंगा, जिसका उत्पादन मैं अपने माँ -बाप को भी  खिला सकूं।”

हिमांशु ने फार्मिंग को गहराई से समझने के लिए किताबें पढ़ीं और दुनिया भर की खेती की तकनीकों का अध्ययन किया। मसानोबु फुकुओका की किताब वन स्ट्रॉ रिवॉल्यूशन ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। उन्होंने कोरिया और अन्य पूर्वी देशों की प्राकृतिक खेती की तकनीकों को अपनाया।

उनका फार्म आज बिना जुताई (No-Till Farming) के सिद्धांत पर काम करता है। वे रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक या खरपतवारनाशक का उपयोग नहीं करते। इसके बजाय, वे घास को काटकर मिट्टी में मिलाते हैं, जो प्राकृतिक खाद का काम करती है।

“हम ऑर्गेनिक नहीं, बल्कि उससे आगे की खेती करते हैं। हम मिट्टी को नहीं जोतते, न ही कोई बाहरी इनपुट डालते हैं।”

जंगली जानबरों से सामना

फार्मिंग की राह आसान नहीं थी। जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के बफर जोन से सटे होने के कारण, हिमांशु के फार्म पर हाथी, तोते और बंदर नियमित रूप से फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं।

“सुबह उठते हैं तो पता चलता है कि हाथियों ने पूरी फसल खा ली। दिन में तोते दालों पर टूट पड़ते हैं। शाम को बंदर आ जाते हैं। लेकिन मैं इससे दुखी नहीं हूं।”

हिमांशु ने इन चुनौतियों को स्वीकार किया और एक सस्टेनेबल मॉडल बनाया, जिसमें हॉर्टिकल्चर, दालें, मसाले, जड़ी-बूटियां और शहद जैसे विविध उत्पाद शामिल हैं। इससे अगर एक फसल असफल होती है, तो दूसरी फसल आय का स्रोत बन जाती है।

सस्टेनेबिलिटी का मॉडल

हिमांशु का फार्म आज एक प्राकृतिक इकोसिस्टम की तरह काम करता है। वे कीटों को नियंत्रित करने के लिए रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग नहीं करते। इसके बजाय, वे प्राकृतिक शिकारियों (जैसे चिड़ियों) को आकर्षित करते हैं। उनके फार्म पर 30 से अधिक प्रकार के फल, जैसे आम, लीची, पपीता, केला, और बेर उगाए जाते हैं। इसके अलावा, हल्दी, अदरक, धनिया, और कैमोमाइल जैसे मसाले और जड़ी-बूटियां उनकी नकदी फसलें हैं।

“मेरी कैमोमाइल पूरी दुनिया में जाती है। इसका स्वाद और हमारा उत्पादन तरीका इसे खास बनाता है।”

जीवन का नया दर्शन

हिमांशु ने अपने अनुभव से सीखा कि सफलता के लिए सही माहौल बनाना जरूरी है। उनका फार्म न केवल उनकी आजीविका का स्रोत है, बल्कि यह उनके लिए एक जीवन शैली है।

“मैंने विदेश में लाखों कमाए, लेकिन आज मैं जो जीवन जी रहा हूं, उसकी कोई कीमत नहीं है।”

वे अपने फार्म पर केवल उन मेहमानों को आमंत्रित करते हैं, जो प्रकृति और शांति की कद्र करते हैं। उनका मानना है कि उनकी मेहनत और संघर्ष को वही लोग समझ सकते हैं, जो प्रकृति के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं।

भविष्य की राह

हिमांशु आज भी प्रयोग कर रहे हैं। वे मानते हैं कि फार्मिंग में कोई अंतिम सफलता नहीं होती, क्योंकि प्रकृति और जलवायु हर बार नई चुनौतियां लाती हैं। लेकिन उनका मल्टीपल पोर्टफोलियो और प्राकृतिक खेती का दृष्टिकोण उन्हें स्थिरता प्रदान करता है।

उनका मानना है कि पहाड़ों के युवाओं को बाहर जाने से रोकने के बजाय, उन्हें वापस आने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

“जो बच्चा दिल्ली की चकाचौंध देखना चाहता है, उसे रोकना मुश्किल है। लेकिन जब वह दुनिया देख लेगा, तो उसे वापस बुलाने के लिए हमें सही अवसर और माहौल तैयार करना होगा।”

हिमांशु जोशी, जिसने विदेश की चमक-दमक छोड़कर अपनी जड़ों की ओर वापसी की और प्रकृति के साथ एक नया जीवन शुरू किया। उनका फॉरेस्ट साइड फार्म न केवल एक खेती का प्रयोग है, बल्कि एक दर्शन है, जो सस्टेनेबिलिटी, प्रकृति और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है।

 

निष्कर्ष:


हिमांशु जोशी की कहानी केवल खेती की नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार, परिवार के प्रति समर्पण, और प्रकृति से जुड़ाव की प्रेरक यात्रा है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि अगर इरादा मजबूत हो और दृष्टिकोण सस्टेनेबल हो, तो परंपरागत सीमाओं को पार कर एक संतुलित और समृद्ध जीवन संभव है।

हिमांशु जोशी का ‘फॉरेस्ट साइड फार्म’ आज की पीढ़ी के लिए एक संदेश है—जहां प्रकृति के साथ तालमेल ही असली प्रगति है।

* साभार NTI (News Trust of India)

 

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