युवाओं की कृषि में भागीदारी: हिमाचल प्रदेश में गैर-पारंपरिक करियर की नई राह

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Krishi Samadhan

युवाओं की कृषि में भागीदारी: हिमाचल प्रदेश में गैरपारंपरिक करियर की नई राह

देश की कुल जनसंख्या में युवाओं का प्रतिशत काफी अधिक है, लेकिन इसके अनुपात में रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। शिक्षित युवा बड़ी संख्या में तकनीकी और उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, परंतु शहरी क्षेत्रों में सीमित नौकरियों और अत्यधिक प्रतिस्पर्धा के चलते वे बेरोजगार रह जाते हैं या कम योग्यता वाले कार्य करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। यह स्थिति न केवल व्यक्तिगत स्तर पर आर्थिक अस्थिरता को जन्म देती है, बल्कि सामाजिक असंतुलन और पलायन जैसी समस्याओं को भी बढ़ावा देती है।

हिमाचल प्रदेश, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और विविध कृषि परंपराओं के लिए जाना जाता है, आज एक नई सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की ओर अग्रसर है। बेरोजगारी की बढ़ती समस्या और शहरी क्षेत्रों में सीमित नौकरी के अवसरों ने हिमाचल के युवाओं को कृषि के क्षेत्र में नवाचार और उद्यमिता की ओर प्रेरित किया है। युवाओं की कृषि में बढ़ती रुचि, विशेष रूप से गैर-पारंपरिक मार्गों के माध्यम से, इस बदलाव का स्पष्ट संकेत है।

गैरपारंपरिक करियर पथ: कृषि और स्टार्टअप्स का मेल

आज का युवा केवल हल और बैल की पारंपरिक खेती तक सीमित नहीं है। वे अब कृषि में फाइनेंस, टेक्नोलॉजी, मार्केटिंग और मैनेजमेंट जैसे क्षेत्रों के ज्ञान को जोड़कर इसे एक लाभदायक व्यवसाय में बदल रहे हैं। स्मार्ट एग्रीकल्चर, ऑर्गेनिक फार्मिंग, हाइड्रोपोनिक्स, ड्रिप इरिगेशन, एग्री-बिजनेस, कृषि आधारित स्टार्टअप और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में युवा अपनी तकनीकी और प्रबंधन योग्यताओं का इस्तेमाल कर एक सफल करियर बना सकते हैं। खेती अब केवल आजीविका का साधन नहीं, बल्कि रोजगार सृजन और आत्मनिर्भरता का मजबूत माध्यम बन रही है।

 उदाहरण 1: मंडी जिले के आयुष शर्मा की कहानी

आयुष, जो कि एक बी.टेक ग्रेजुएट हैं, चंडीगढ़ से पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश में थे लेकिन कोविड-19 के बाद बेरोजगारी ने उन्हें झकझोर दिया। उन्होंने वापस गांव लौटकर “हाइड्रोपोनिक फार्मिंग” शुरू की। आज वे सोलर-संचालित ग्रीनहाउस में लेट्यूस, स्पिनेच और स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं। उनका उत्पाद शिमला और चंडीगढ़ की रिटेल चेन में बिकता है।

FLUXबदलती सोच: खेती से स्टार्टअप की ओर

कई युवा FPOs (Farmer Producer Organizations), एग्रीटेक स्टार्टअप्स और सोशल मीडिया मार्केटिंग के जरिए कृषि उत्पादों की सीधी बिक्री कर रहे हैं। ई-कॉमर्स और डिजिटल मार्केटिंग की मदद से वे मंडियों पर निर्भर नहीं रह गए हैं।

सरकारी समर्थन और योजनाएं

सरकार भी इस दिशा में युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनाएं चला रही है। केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, आत्मनिर्भर भारत अभियान, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना, स्टार्टअप इंडिया योजना जैसी पहलें युवाओं को वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण और बाजार तक पहुंच देने में सहायक हैं।

इसके साथ ही, राज्य सरकारें भी क्षेत्रीय जरूरतों के अनुसार योजनाएं लागू कर रही हैं। उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई “एचपी शिवा परियोजना” (HP SHIVA) उपोष्ण कटिबंधीय फलों की खेती, सिंचाई सुविधा और कृषि मूल्य श्रृंखला विकास के माध्यम से युवाओं को संगठित कर उन्हें सहकारी समितियों, एफपीओ और विपणन संस्थाओं से जोड़ रही है। इस योजना से कई युवाओं ने परंपरागत नौकरी की तलाश छोड़कर बागवानी और कृषि उद्यमिता की राह पकड़ी है।

 कृषि में नवाचार के अवसर

एग्रीटेक ऐप्स – मौसम पूर्वानुमान, कीट पहचान, और बाजार मूल्य जानने के लिए मोबाइल ऐप्स का उपयोग।

ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई – जल संरक्षण के लिए आधुनिक तकनीकें।

कंट्रैक्ट फार्मिंग – कंपनियों से समझौता कर युवाओं द्वारा फसल उगाना।

 

 निष्कर्ष:

युवाओं में बेरोजगारी की समस्या का समाधान केवल सरकारी नौकरियों या निजी क्षेत्रों में रोजगार तक सीमित नहीं रह सकता। कृषि क्षेत्र में संभावनाओं को पहचानकर और उन्हें सही दिशा में संसाधनों, प्रशिक्षण और समर्थन के साथ जोड़कर हम न केवल युवाओं को आत्मनिर्भर बना सकते हैं, बल्कि देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सशक्त कर सकते हैं।

“कृषि अब सिर्फ खेती नहीं, एक करियर विकल्प है I”

युवाओं में बेरोजगारी की समस्या आज भारत के सामने खड़ी सबसे गंभीर सामाजिकआर्थिक चुनौतियों में से एक है।ऐसे समय में कृषि क्षेत्र युवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण और स्थायी समाधान के रूप में उभर कर सामने आया है।

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