फसल विविधीकरण कार्यक्रम (CDP): किसानों की आमदनी बढ़ाने और कृषि को सतत बनाने की दिशा में एक प्रभावशाली पहल
भारत की कृषि व्यवस्था परंपरागत रूप से कुछ विशेष फसलों पर निर्भर रही है, जैसे कि धान और गेहूं। लगातार एक ही प्रकार की फसल की खेती से भूमि की उर्वरता में कमी, जल की अत्यधिक खपत और किसानों की आय में स्थिरता जैसी समस्याएं सामने आती हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए भारत सरकार ने फसल विविधीकरण कार्यक्रम (Crop Diversification Programme – CDP) की शुरुआत की है।
यह कार्यक्रम मुख्य रूप से उन राज्यों में लागू किया गया है जहाँ पर धान की अत्यधिक खेती की जाती है, जैसे पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि। CDP का उद्देश्य किसानों को धान जैसी पारंपरिक जल-गहन फसलों से हटाकर कम पानी वाली और अधिक लाभकारी वैकल्पिक फसलों जैसे दालें, तिलहन, फल-सब्जियां, मक्का आदि की ओर प्रेरित करना है।
कार्यक्रम की प्रमुख विशेषताएँ:
- प्रशिक्षण एवं जागरूकता: किसानों को वैकल्पिक फसलों की खेती के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है जिससे वे आधुनिक तकनीक और बाज़ार की मांग के अनुसार खेती कर सकें।
- बीज और मशीनरी की सहायता: किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज, ड्रिप सिंचाई यंत्र, मल्चिंग शीट, पावर टिलर जैसे उपकरणों पर सब्सिडी दी जाती है।
- बाजार उपलब्धता और मूल्य समर्थन: सरकार वैकल्पिक फसलों की खरीदी की गारंटी और विपणन सहायता देती है जिससे किसानों को उचित मूल्य प्राप्त हो सके।
- सिंचाई सुधार: सूक्ष्म सिंचाई पद्धतियों को बढ़ावा देकर जल संरक्षण और उत्पादकता बढ़ाने पर बल दिया जाता है।
इस योजना को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) के अंतर्गत वित्तीय सहायता दी जाती है और इसे राज्य सरकारों के सहयोग से लागू किया जाता है। इसके अलावा, यह कार्यक्रम प्राकृतिक खेती, जैविक खेती और मिश्रित कृषि जैसे अन्य कार्यक्रमों के साथ भी समन्वय करता है।
निष्कर्ष:
फसल विविधीकरण कार्यक्रम न केवल किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है, बल्कि यह जल संरक्षण, मिट्टी की गुणवत्ता सुधार, और पोषण सुरक्षा जैसे अनेक पर्यावरणीय और सामाजिक लाभ भी प्रदान करता है। यह पहल कृषि को टिकाऊ और लाभकारी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
“फसल विविधीकरण से जुड़े, खेती में बदलाव लाएँ – आय बढ़ाएँ, जल बचाएँ, और पर्यावरण की रक्षा करें।“
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