कृषि वानिकी: खेती और पर्यावरण का संतुलन
कृषि वानिकी (Agroforestry) एक ऐसा समन्वित कृषि पद्धति है जिसमें खेती, बागवानी और वृक्षारोपण को एक साथ किया जाता है। यह प्रणाली न केवल किसानों की आमदनी बढ़ाने में सहायक है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, भूमि की उर्वरता में सुधार और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
कृषि वानिकी क्या है?
कृषि वानिकी का अर्थ है – एक ही भूखंड पर पेड़ों, झाड़ियों, फसलों और कभी-कभी पशुपालन को एकीकृत रूप से करना। इसमें खेत की मेड़ों पर या खेत के भीतर लाभकारी पेड़ लगाए जाते हैं, जिनसे किसान को बहुपक्षीय लाभ मिलते हैं। उदाहरण के लिए, नीम, शीशम, अर्जुन, सहजन, पापड़ी, बबूल, करंज, सागौन, यूकेलिप्टस जैसे पेड़ आमतौर पर कृषि वानिकी में शामिल किए जाते हैं।
इसके लाभ
- आर्थिक लाभ: पेड़ से लकड़ी, फल, पत्ते, गोंद आदि का उत्पादन होता है जो अतिरिक्त आय का स्रोत बनते हैं। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
- मिट्टी की उर्वरता में सुधार: कुछ पेड़ जैसे करंज, नीम आदि भूमि में नाइट्रोजन जोड़ते हैं जिससे मिट्टी की गुणवत्ता सुधरती है।
- जल संरक्षण: वृक्ष भूमिगत जलस्तर को बनाए रखने में मदद करते हैं और जल संरक्षण को बढ़ावा देते हैं।
- जलवायु पर नियंत्रण: वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर वातावरण को शुद्ध करते हैं और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करते हैं।
- जैव विविधता को बढ़ावा: कृषि वानिकी से जैव विविधता संरक्षित रहती है और कीट प्रबंधन में भी सहायता मिलती है।
भारत में कृषि वानिकी की आवश्यकता
भारत में किसानों को अक्सर सीमित भूमि और बदलते मौसम से जूझना पड़ता है। कृषि वानिकी एक ऐसी तकनीक है जो उन्हें कम संसाधनों में बेहतर उत्पादन का अवसर देती है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति जैसी सरकारी योजनाएं भी इस पद्धति को बढ़ावा दे रही हैं।
कौन–सी फसलें उपयुक्त हैं?
कृषि वानिकी में दालें, तिलहन, सब्जियां, औषधीय पौधे आदि उगाए जा सकते हैं। फसलों का चयन स्थान, जलवायु और मिट्टी के अनुसार किया जाता है। उदाहरण के लिए – उत्तर भारत में गेहूं और सरसों को पेड़ों के साथ सफलतापूर्वक उगाया जाता है।
निष्कर्ष
कृषि वानिकी एक टिकाऊ और लाभकारी कृषि प्रणाली है जो किसानों को आर्थिक सुरक्षा, पर्यावरणीय लाभ और खाद्य सुरक्षा प्रदान करती है। यह आज के बदलते कृषि परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण विकल्प बन चुकी है, जिसे अपनाकर किसान न केवल अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण कर सकते हैं।
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