भारत में किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए अनाज मंडियों, फल व सब्जी मंडियों के आसरे रहना पड़ता है जहाँ पर आढ़ती द्वारा किसान की उपज एक कमीशन एजेंट के रूप में ख़रीददारों द्वारा तय किये गए दामों पर बेचता है। सरकारी खरीद एजेंसियों की अपनी मजबुरियाँ रहती हैं जिसकी वजह से वे भी प्रत्येक किसान से उनका अनाज व दलहन फसलें सरकार द्वारा तय दाम पर नहीं खरीद पाती। कई बार किसानों को कमीशनखोरों के जरिये अपना धान, गेहूं इत्यादि सरकारी एजेंसियों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे किसानों को सरकारी खरीद मूल्य से कम दाम मिलते हैं।
फल एवं सब्जियों की खरीद के लिए कोई भी सरकारी संस्थागत ढांचा सक्रिय नहीं दिखता। फल व सब्जी मंडियों में बोलियों के जरिये उत्पाद को बेचने की पुरानी परम्परा से किसानों को कई बार लागत से भी बहुत कम दाम मिलता है और कई बार किसान अपने फल /सब्जी को फेंकने पर पर मजबूर हो जाता है, जिसकी वजह से किसान अधिक गरीबी व ऋण के बोझ में फंस जाता है, परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्रों में किसान आत्महत्या तक करने पर मजबूर हो जाते हैं। प्रचलन में जो कृषि विपणन व्यवस्था हैं उसने छोटे व मंझोले किसानों को कभी भी समृद्ध नहीं बनने दिया और भविष्य में भी ऐसी कोई सम्भावना नजर नहीं आती है।
किसानों के दर्द को महसूस करते हुए श्री डी.एन चौहान ने सन 2017 से 2023 तक किसानों की दुर्दशा के पीछे के कारणों को समझने का अथक प्रयास किया जिसके फलस्वरूप कृषि समाधान वेब पोर्टल की सरंचना हुई तथा इस वेब पोर्टल के विकास पर कार्य करना आरंभ किया।