मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण एवं आपूर्ति
फसलों की अच्छी पैदावार के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश के अतिरिक्त सूक्ष्म पोषक तत्वों की भी आवश्यकता होती है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की संख्या आठ हैः जस्ता, तांबा, लोहा, मैंगनीज, बोरॉन, मॉलिब्डेनम, निकल एवं क्लोरीन। इनमें जस्ता, लोहा एवं बोरॉन का प्रमुख स्थान है। साधारणतः इन सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी अधिक उपज देने वाली फसलों के प्रभेदों का फसलचक्रों में समावेश, गहन खेती, रासायनिक उर्वरकों के असन्तुलित प्रयोग एवं जैविक खादों की उचित मात्र मृदा में नहीं डालने के कारण हो रहा है।
पोषक तत्वों का पौधों पर प्रभाव
मुख्य पोषक तत्वों का पौधों पर प्रभाव एवं कमी के लक्षण
नाइट्रोजन
यह पौधे के तने, शाखाओं एवं पत्तों के स्वास्थ्य एवं वृद्धि में सहायक है। मृदा में इसकी अधिकता से पौधे बढ़कर गिर जाते हैं, रोगों एवं कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है, दाने कम लग पाते हैं तथा विलंब से पकते हैं। इसकी कमी से पौधों की वृद्धि रुक जाती है। हल्के हरे रंग के नीचे के पत्ते पफीके पीले रंग से लेकर भूरे रंग के हो जाते हैं। डंठल एवं तना छोटे और पतले हो जाते हैं।
फॉस्फोरस
यह पौधों की जड़ों की वृद्धि में सहायक है एवं दानों को पुष्ट करता है। फॉस्फोरस आवश्यकता से अधिक नाइट्रोजन के हानिकारक प्रभावों को भी दूर करता है तथा कीटों एवं रोगों के प्रकोप को रोकता है। फसलें समय पर पकती हैं। इसकी कमी से गहरे हरे रंग का पौधा बैंगनी रंग, जो बाद में स्याहीयुक्त तथा लाल रंग में बदला जाता है।
फसलोत्पादन में चार बिन्दुओं पर मुख्यतः नगद खर्च की आवश्यकता होती हैः सिंचाई, उर्वरक, बीज एवं पौध संरक्षण। सिंचाई के बाद अधिकतम खर्च उर्वरक पर किया जाता है। उर्वराशक्ति का निर्धारण मृदा फसलोत्पादन में चार बिन्दुओं पर मुख्यतः नगद खर्च की आवश्यकता होती हैः सिंचाई, उर्वरक, बीज एवं पौध संरक्षण।
सिंचाई के बाद अधिकतम खर्च उर्वरक पर किया जाता है। उर्वराशक्ति का निर्धारण मृदा में उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्र, फसलों द्वारा मृदा में पोषक तत्वों का ह्रास एवं पौधों में पोषक तत्वों की अदृश्य क्षुधा, कमी एवं अधिकता की जानकारी से प्राप्त होता है।
पोटाश
यह पौधों में चीनी एवं मांड (स्टार्च) बनाने की प्रक्रिया में सहायक होता है। इसके साथ ही उनमें प्रतिकूल मौसम एवं कीटों तथा व्याधियों से बचने की क्षमता में वृद्धि लाता है। इसके अलावा पौधों में तना एवं डंठलों को मजबूत बनाता है। इससे पौधों में जलधारण की क्षमता बढ़ जाती है। इसकी कमी के कारण नीचे के पत्तों पर निर्जीव रेशे के धब्बे, चितकबरे या पीले होते हैं या फिर इनमें हरेपन की कमी होती है।
इन मुख्य पोषक तत्वों की आपूर्ति जैविक खादों एवं रासायनिक उवर्रकों द्वारा की जाती है। पत्के फसल के लिए अलग.अलग मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
जस्ता
यह पौधों के अंदर इंडोल एसेटिक एसिड नामक हार्मोन का निर्माण करने एवं उनकी वृद्धि में सहायता करता है और प्रोटीन की मात्र को भी बढ़ाता है। इसकी कमी के लक्षण कुछ प्रमुख फसलों में इस प्रकार हैंः धानः रोपाई के 15-20 दिनों बाद सर्वप्रथम ऊपर से तीसरी पत्ती पर लाल-भूरे रंग के बिन्दु प्रकट होते हैं। ये तुरंत आपस में मिलकर बड़े भूरे रंग के धब्बे बना लेते हैं और अंत में पूरी पत्ती को ढक लेते हैं। इसे धान के खैरा रोग के नाम से भी जाना जाता है।
मक्का
जस्ते की कमी के लक्षण सर्वप्रथम नई पत्तियों पर प्रकट होते हैं। नवीन पत्ती के आधार के तन्तु मध्य शिरा के दोनों तरफ से सफेद-पीले रंग में बदल जाते हैं और धीरे-धीरे पत्ती के अगले हिस्से की ओर बढ़ते हैं। इससे तने की दो गांठों के बीच की दूरी कापफी कम हो जाती है और पौधों का आकार छोटा दिखता है।
गेहूं
जस्ते की कमी के लक्षण कल्ले निकलते समय दिखाई देते हैं। सर्वप्रथम ऊपर से तीसरी पत्ती के मध्य शिरा एवं किनारों के बीच के भागों में हल्के पीले रंग की धारी बन जाती है और आगे चलकर भूरे रंग में बदल जाती है। पत्ती बीच से सिकुड़ने लगती हैं और सूख जाती हैं।
चना एवं मसूर
जस्ते के अभाव में पौधों के बीच के भाग की पत्तियों का हरा रंग लाल भूरे रंग में परिवर्तित हो जाता है और बाद में ये पत्तियां सूखने लगती हैं। पौधों की वृद्धि रुक जाती है, शाखायें कम निकलती हैं और पत्तियां आकार में छोटी दिखती हैं।
प्याज
जस्ते की कमी होने से पौधे का विकास रुक जाता है। ऊपरी पत्तियां टेढ़ी हो जाती हैंए जो आगे चलकर सिकुड़ना एवं सूखना प्रारम्भ कर देती हैं। प्याज की गांठें आकार में काफी छोटी हो जाती हैं।
जस्ते के अनुप्रयोग की विधि
मृदा उपचार विधि फसल की बुआई या रोपाई के समय 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हैक्टर की दर से मृदा में मिला दिया जाता है। इसका असर चूनायुक्त मृदा में चार तथा अन्य मृदाओं में छह फसलों तक रहता है। मृदा में 50 क्विंटल कम्पोस्ट और 12.5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हैक्टर देने की सिफारिश की जाती है।
छिड़काव विधि
5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट का 2.5 किग्रा. लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर 15 दिनों के अंतराल पर दो छिड़़काव कर देने से जस्ते की कमी के लक्षण दूर हो जाते हैं। इससे फसलों की उपज में 30-40 प्रतिशत तक वृद्धि हो जाती है।
लौह तत्व
पौधों की पत्तियों में हरे रंग के उत्पादन में लौह तत्व का महत्वपूर्ण योगदान है। चूनायुक्त मृदा में धान की पौध को लौह तत्व की कमी से काफी नुकसान पहुंचता है। लौह तत्व की कमी होने पर सर्वप्रथम सबसे ऊपर की पत्ती का रंग पीला, सफेद होने लगता है और बाद में पूरी पत्ती सफेद रगं में बदल जाती है तथा सूखने लगती है।
लौह तत्व की अनुप्रयोग विधि
मृदा अनुप्रयोग
मृदा में लौह तत्व की कमी को पेफरस सल्फेट 50 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर या पायराइट 5 क्ंविटल प्रति हैक्टर डालकर पूरा किया जाता है। फेरस सल्फेट को बुआई के समय अन्य उर्वरकों के साथ मिलाकर मृदा में डाल देना चाहिए, लेकिन पाइराइट को बुआई से 25 दिन पहले ही मृदा में डाल देना चाहिए, जिससे रासायनिक क्रिया पूरी हो सके।
पत्तियों पर फेरस सल्फेट घोल का छिड़काव
लोहे की कमी 1.2 प्रतिशत फेरस सल्फेट का पानी में घोल बनाकर 10 दिनों के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करने से पूरी हो जाती है।