धान की खेती
धान, भारत समेत कई एशियाई देशों की मुख्य खाद्य फसल है। इतना ही नहीं दुनिया में मक्का के बाद जो फसल सबसे ज्यादा बोई और उगाई जाती है वो धान ही है। करोड़ों किसान धान की खेती करते हैं। खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान लगभग पूरे भारत में लगाई जाती है। अगर कुछ बातों का शुरु से ही ध्यान रखा जाए तो धान की फसल ज्यादा मुनाफा देगी। धान की खेती की शुरुआत नर्सरी से होती है, इसलिए बीजों का अच्छा होना जरुरी है। कई बार किसान महंगा बीज.खाद तो लगाता है, लेकिन सही उपज नहीं मिल पाती है, इसलिए बुवाई से पहले बीज व खेत का उपचार कर लेना चाहिए। बीज महंगा होना जरुरी नहीं है बल्कि विश्वसनीय और आपके क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के मुताबिक होना चाहिए। देश के अलग-अलग राज्यों में धान की खेती होती है और जगह मौसम भी अलग होता है, हर जगह के हिसाब से धान की किस्में विकसित की जाती हैं, इसलिए किसानों को अपने प्रदेश के हिसाब से विकसित किस्मों की ही खेती करनी चाहिए।
मई की शुरुआत से किसानों को खेती की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए, ताकि मानसून आते ही धान की रोपाई कर दें। किसानों को बीज शोधन के प्रति जागरूक होना चाहिए। बीज शोधन करके धान को कई तरह के रोगों से बचाया जा सकता है। किसानों को एक हेक्टेयर धान की रोपाई के लिए बीज शोधन की प्रक्रिया में महज 25-30 रुपये खर्च करने होते हैं।
देश में प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलांगाना, पंजाब, उड़ीसा, बिहार व छत्तीसगढ़ हैं। पूरे देश में 36.95 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती होती है। कृषि मंत्रालय के अनुसार खरीफ सत्र 2016-17 में 109.15 मिलियन टन धान का उत्पादन हुआ, जोकि पिछले सत्र से 2.50 मिलियन टन (2.34 प्रतिशत) ज्यादा था। पिछले पांच वर्षों में 3.54 प्रतिशत अधिक रहा।
असिंचित दशाः
नरेन्द्र.118, नरेन्द्र.97, साकेत.4, बरानी दीप, शुष्क सम्राट, नरेन्द्र लालमनी
सिंचित दशाः
सिंचित क्षेत्रों के लिए जल्दी पकने वाली किस्मों में पूसा.169, नरेन्द्र.80, पंत धान.12, मालवीय धान.3022, नरेन्द्र धान.2065 और मध्यम पकने वाली किस्मों में पंत धान.10, पंत धान.4, सरजू.52, नरेन्द्र.359, नरेन्द्र.2064, नरेन्द्र धान.2064, पूसा.44, पीएनआर.381 प्रमुख किस्में हैं। ऊसरीली भूमि के लिए धान की किस्में:
नरेन्द्र ऊसर धान.3, नरेन्द्र धान.5050, नरेन्द्र ऊसर धान.2008, नरेन्द्र ऊसर धान.2009
बीज शोधन से नहीं लगेगा कोई रोग
सबसे पहले दस लीटर पानी में 1.6 किलो खड़ा नमक मिलाकर घोल लें, इस घोल में एक अंडा या फिर उसी आकार का एक आलू डाले और जब अंडा या आलू घोल में तैरने लगे तो समझिए की घोल तैयार हो गया है। अगर अंडा या आलू डूब जाता है तो पानी में और आलू डालकर घोले, जब तक कि अंडा या आलू तैरने न लगे, तब जाकर घोल बीज शोधन के लिए तैयार है।
तैयार घोल में धीरे-धीरे करके धान का बीज डालें, जो बीज पानी की सतह पर तैरने लगे उसे फेंक दें, क्योंकि ये बीज बेकार होते हैं। जो बीज नीचे बैठ जाए उसे निकाल लें, यही बीज सही होता है। इस घोल का उपयोग पांच से छह बार धान के बीज शोधन के लिए कर सकते हैं, तैयार बीज को साफ पानी से तीन से चार बार अच्छे से धो लें।
फफूंदनाशी से बीजोपचार
प्रति किलो बीज को 3 ग्राम बैविस्टिन फफूंदनाशक से उपचारित करें। फफूंदनाशक का उपयोग पाउडर के रूप में धुले हुण् बीज में मिलाकर कर सकते हैं या फिर 3ग्राम प्रति किलो बीज को पानी में मिलाकर उपचारित करें। ऐसे अंकुरित करें बीज उपचारित बीज को गीले बोरे में लपेटकर ठंडे कमरें में रखें। समय समय पर इस बोरे पर पानी सींचते रहें। लगभग 48 घंटे बाद बोरे को खोलें। बीज अंकुरित होकर नर्सरी डालने के लिए तैयार होते हैं।
जैव उर्वरक से करें खेत की मिट्टी का उपचार
खेत तैयार करते समय, प्रति एकड़ खेत की मिट्टी में 10-12 किलो बीजीए (नील हरित शैवाल) और 10-12 किलो पीएबी जैव उर्वरक का छिड़काव कर मिश्रित करें। इन उर्वरकों में उपस्थित जीव, रसायनिक उर्वरक से क्रमशः नाइट्रोजन व पोटाश तत्व, धान के पौधे तक अच्छे ढंग से पहुंचाने में सहायता करेंगे। बीज की बुवाई/पौधों की रोपाई इस बीज को खेत तैयार करके लेही विधि से बो सकते हैं। रोपाई विधि से बुवाई के लिए पहले से तैयार जमीन से 6 इंच ऊंची नर्सरी में इसे बोएं और 20 से 25दिन की नर्सरी तैयार करें और मुख्य खेत में रोपाई करें।
रोपणी तैयार करें और एसआरआई विधि (श्रीविधि) से रोपाई करने के लिए अंकुरित बीज की नर्सरी तैयार करें। 12 से 14 दिन के पौधे तैयार करेंए उसके बाद पौधों को पूरी जड़ व बीज सहित निकालें। तुरंत इस नर्सरी को पहले से तैयार खेत में 25 सेमी. दूरी पर कतारबद्ध रुप में बोएं। एक जगह पर एक से दो पौधे ही रोपें। दूरी निर्धारित करने के लिए पैडी मार्कर का भी उपयोग कर सकते हैं। जो पौधे से पौधे के लिए और कतार से कतार के लिए 25 सेमी. के अंतर पर निशान बनाता है। श्रीविधि से धान की रोपाई उसी खेत में करें जिसमें पानी न भरता हो। श्रीविधि से बुवाई के बाद खेत में पानी निकालने रहें और जब आवश्यकता हो तब, जैसे गेहूं के खेत में सिंचाई करते हैं उसी प्रकार धान के खेत में सिंचाई करें और खेत में नमी बना कर रखें। बाकी फसल प्रबंधन सामान्य धान की तरह करें। इस प्रकार से प्रबंधन करने से निश्चित ही कम लागत में अधिक उपज किसान को प्राप्त होगी।