जीरे की फसल

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जीरे की फसल

जीरा मसाले वाली मुख्य बीजीय फसल है। देश का 80 प्रतिशत से अधिक जीरा गुजरात व राजस्थान राज्य में उगाया जाता है। राजस्थान में देश के कुल उत्पादन का लगभग 28 प्रतिशत जीरे का उत्पादन किया जाता है तथा राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में कुल राज्य का 80 पतिशत जीरा पैदा होता है लेकिन इसकी औसत उपज 380 कि.ग्रा.प्रति हे. पड़ौसी राज्य गुजरात 550 कि.ग्रा.प्रति. हे. की अपेक्षा काफी कम है। उन्नत तकनीकों के प्रयोग द्वारा जीरे की वर्तमान उपज को 25-50 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है।

 

किस्में     

किस्म पकने की अवधि (दिनों में) औसत उपज(कु. प्रति.हे.) विशेषतायें
आर  जेड -19 120-125 9-11 उखटा, छाछिया व झुलसा रोग कम लगता है l
आर जेड-209 120-125 7-8 छाछिया झुलसा रोग कम लगता हैl दाने मोटे होते हैंI
जी सी-4 105-110 7-9 उखटा बीमारी के प्रति सहनशीलl बीज बड़े आकार के l
आर  जेड-223 110-115 6-8 यह उखटा बीमारी के प्रति रोधक तथा बीज में तेल की मात्रा 3.25 प्रतिशत

 

भूमि एवं उसकी तैयारी

जीरे की फसल बलुई दोमट तथा दोमट भूमि अच्छी होती है/ खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था  होनी चाहियेस जीरे की फसल के लिए एक जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करने के बाद एक क्रॉस जुताई हैरो से करके पाटा लगा देना चाहिये तथा इसके पश्चात एक जुताई कल्टीवेटर से करके पाटा लगाकर मिटटी भुरभुरी बना देनी चाहिये।

 

बीज एवं बुवाई

जीरे की बुवाई के समय तापमान 24 से 28° सेंटीग्रेड होना चाहिये तथा वानस्पतिक वृद्धि के समय 20 से 25°सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त रहता है। जीरे की बुवाई 1 से 25 नवंबर के मध्य कर देनी चाहिये। जीरे की किसान अधिकतर छिड़काव विधि द्वारा करते हैं, लेकिन कल्टीवेटर से 30 से. मी. के अन्तराल पर पंक्तियां बनाकर उससे बुवाई करना अच्छा रहता है। एक हेक्टयर क्षेत्र के लिए 12 कि. ग्रा. बीज पर्याप्त रहता है। ध्यान रहे जीरे का बीज 1.5 से.मी. से अधिक गहराई पर नहीं बोना चाहिये।

खाद एवं उर्वरक

जीरे कि फसल के लिए खाद उर्वरकों कि मात्रा भूमि जाँच करने के बाद देनी चाहिये। सामान्य परिस्थितियों में जीरे की फसल के लिए पहले 5 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद अन्तिम जुताई के समय खेत में अच्छी प्रकार मिला देनी चाहिये। इसके बाद बुवाई के समय 65 किलो डीएपी व 9 किलो यूरिया मिलाकर खेत में देना चाहिये। प्रथम सिंचाई पर 33 किलो यूरिया प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव कर देना चहिये।

सिंचाई

जीरे की बुवाई के तुरन्त पश्चात एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिये। ध्यान रहे तेज भाव के कारण बीज अस्त व्यस्त हो सकते हैं। दूसरी सिंचाई 6-7 दिन पश्चात करनी चाहिये। इस सिंचाई द्वारा फसल का अंकुरण अच्छा होता है तथा पपड़ी का अंकुरण पर कम असर पड़ता है। इसके बाद यदि आवश्यकता हो तो 6-7 दिन पश्चात हल्की सिंचाई करनी चाहिये अन्यथा 20 दिन के अन्तराल पर दाना बनने तक तीन और सिंचाई करनी चाहिये। दाना पकने के समय जीरे में सिंचाई न करें ।अन्यथा बीज हल्का बनता है । सिंचाई के लिए फव्वारा विधि का प्रयोग करना उत्तम है ।

खरपतवार नियंत्रण

जीरे की फसल में खरपतवारों का अधिक प्रकोप होता है क्योंकि प्रांरभिक अवस्था में जीरे की बढ़वार हो जाती है तथा फसल को नुकसान होता है। जीरे में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए बुवाई के समय दो दिन बाद तक पेन्डीमैथालिन (स्टोम्प) नामक खरपतवार नाशी की बाजार में उपलब्ध 3-3 लीटर मात्रा का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिये। इसके उपरान्त जब फसल 25-30 दिन की हो जाये तो एक गुड़ाई कर देनी चाहिये। यदि मजदूरों की समस्या हो तो आक्सीडाईजारिल (राफ्ट) नामक खरपतवारनाशी की बाजार में उपलब्ध 750 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चहिये ।

फसल चक्र

एक ही खेत में लगातार तीन वर्षो तक जीरे की फसल नहीं लेनी चाहिये। अन्यथा उखटा रोग का अधिक प्रकोप होता है । अतः उचित फसल चक्र अपनाना बहुत ही आवश्यक है। बाजरा,जीरा,मूंग,गेहूं, बाजरा. जीरा तीन वर्षीय फसल चक्र का प्रयोग लिया जा सकता है ।

पौध संरक्षण

चैंपा या एफिड

इस किट का सबसे अधिक प्रकोप फूल आने की अवस्था पर होता है। यह किट पौधों के कोमल भागों का रस चूसकर फसल को नुकसान पहुचांता है इस किट के नियंत्रण हेतु एमिडाक्लोप्रिड की 0.5 लीटर या मैलाथियान 50 ई.सी. की एक लीटर या एसीफेट की 750 ग्राम प्रति हेक्टयर की दर से 500  लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चहिये, आवश्यकता हो तो दूसरा छिड़काव करना चहिये।

दीमक

दीमक जीरे के पौधों की जड़ें काटकर फसल को बहुत नुकसान पहुँचाती है। दीमक की रोकथाम के लिए खेत की तैयारी के समय अन्तिम जुताई पर क्लोरोपाइरीफॉस या क्योनालफॉस की 20-25 कि.ग्रा.मात्रा प्रति हेक्टयर कि दर से भुरकाव कर देनी चाहिये। खड़ी फसल में क्लोरोपाइरीफॉस की 2 लीटर मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से सिंचाई के साथ देनी चाहिये। इसके अतिरिक्त क्लोरोपाइरीफॉस की 2 मि.ली.मात्रा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिये।

उखटा रोग

इस रोग के कारण पौधे मुरझा जाते हैं तथा यह आरम्भिक अवस्था में अधिक होता है लेकिन किसी भी अवस्था में यह रोग फसल को नुकसान पहुंचा सकता है। इसकी रोकथाम के लिए बीज को  ट्राइकोडर्मा की 4 ग्राम प्रति किलो या बाविस्टीन की 2 ग्राम प्रति किलो बीज दर से उपचरित करके बोना चाहिये। प्रमाणित बीज का प्रयोग करें। खेत में ग्रीष्म ऋतु में जुताई करनी चाहिये तथा एक ही खेत में लगातार जीरे की फसल नहीं उगानी चाहिए। खेत में रोग के लक्षण दिखाई देने पर 2.50 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा कि 100 किलो कम्पोस्ट के साथ मिलाकर छिड़काव कर देना चाहिये तथा हल्की सिंचाई करनी चाहिये।

झुलसा

यह रोग फसल में फूल आने के पश्चात बादल होने पर लगता है । इस रोग के कारण पौधों का ऊपरी भाग झुक जाता है तथा पतियों व तनों पर भूरे धब्बे बन जाते है । इस रोग के नियंत्रण के लिए मैन्कोजेब की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये।

छाछया रोग

इस रोग के कारण पौधे पर सफ़ेद रंग का पाउडर दिखाई देता है तथा धीरे-धीरे पूरा पौधा सफ़ेद पाउडर से ढक जाता है एवं बीज नहीं बनते। बीमारी के नियंत्रण हेतु गन्धक का चूर्ण 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टयर की दर से भुरकाव करना चाहिये या एक लीटर कैराथेन प्रति हेक्टयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिये। जीरे की फसल में कीट एवं बीमारियों के लगने की अधिक संभावना रहती है फसल में बीमारियों एवं कीटों द्वारा सबसे अधिक नुकसान होता है। इस नुकसान से बचने के लिए जीरे में निम्नलिखित तीन छिड़काव करने चाहिये।

  • प्रथम छिड़काव बुवाई के 30-35 दिन पश्चात मैन्कोजेब 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर करें

  • दूसरा छिड़काव बुवाई के 45-50 दिन पश्चात मैन्कोजेब 2 ग्राम, इमिडाक्लोप्रिड50 मि.ली. तथा घुलनशील गंधक 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिये। इसके अतिरिक्त यदि किसी बीमारी या कीट का अधिक प्रकोप हो तो उसको नियंत्रण करने के लिए संबंधित रोगनाशक या कीटनाशक का प्रयोग करें ।

  • तीसरे छिड़काव में मेक्नोजेब 2 ग्राम, एमिडाकलप्रिड1 मि.ली. व 2 ग्राम घुलनशील गंधक प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के 60-70दिन पश्चात कर देना चाहिये।

बीज उत्पादन

जीरे का बीज उत्पादन करने हेतु खेत का चयन महत्पूर्ण होता है। जीरे के लिए ऐसे खेत का चयन करना चाहिए जिसमें पिछले दो वर्षो से जीरे की खेती न की गई हो। भूमि में जल निकास का अच्छा प्रबंध होना चाहिये। जीरे के बीज उत्पादन के लिए चुने खेत के चारो तरफ 10 से 20 मीटर की दुरी तक किसी खेत में जीरे की फसल नहीं होनी चाहिये। बीज उत्पादन के लिए सभी आवश्यक कृषि क्रियायें जैसे खेत की तैयारी। बुवाई के लिए अच्छा बीज एवं उन्नत विधि द्वारा बुवाई, खाद एवं उर्वरकों का उचित नियंत्रण आवश्यक है। अवांछनीय पौधों को फूल बनने एवं फसल की कटाई से पहले निकलना आवश्यक है। फसल जब अच्छी प्रकार पक जाये तो खेत के चारों का लगभग 10 मीटर खेत छोड़ते हुए लाटा काट कर अलग सुखाना चाहिये तथा दाने को अलग निकाल कर अलग उसे अच्छी प्रकार सुखाना चाहिये। दाने में 8-9 प्रतिशत से अधिक नमी नहीं होनी चाहिये। बीजों का ग्रेडिंग करने के बाद उसे कीट एवं कवकनाशी रसायनों से उपचारित कर साफ बोरे या लोहे की टंकी में भरकर सुरक्षित स्थान पर भंडारित कर दिया जाना चाहिये। इस प्रकार उत्पादित बीज को अगले वर्ष के लिए उपयोग  किया जा सकता है।

कटाई एवं गहाई

सामान्य रूप से जब बीज एवं पौधा भूरे रंग का हो जाये तथा फसल पूरी पक जाये तो तुरन्त कटाई कर लेनी चाहिय।  पौधों को अच्छी प्रकार से सुखाकर थ्रेसर से मँड़ाई कर दाना अलग कर लेना चाहिये। दाने को अच्छे प्रकार से सुखाकर साफ बोरों में भंडारित कर लिया जाना चाहिये।

उपज एवं आर्थिक लाभ

उन्नत विधियों के उपयोग करने पर जीरे की औसत उपज 7-8 कुन्तल बीज प्रति हेक्टयर प्राप्त हो जाती है। जीरे की खेती में लगभग 30 से 35 हज़ार रुपये प्रति हेक्टयर का खर्च आता है। जीरे के दाने का 100 रुपये प्रति किलो भाव रहने पर 40 से 45 हज़ार रुपये प्रति हेक्टयर का शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है ।

स्त्रोत: केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान;भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद,जोधपुर, राजस्थान