चाय
चाय एक महत्त्वपूर्ण पेय पदार्थ है और संसार के अधिकांश लोग इसे पसन्द करते हैं। चाय मुलायम एवं नयी पत्ती, बन्द वानस्पतिक कली आदि से तैयार की जाती है। चाय में मुख्यतः कैफ़ीन का अंश पाया जाता है। इसकी ताज़ी पत्तियों में टैनिन की मात्रा 25.1 प्रतिशत पायी जाती है, जबकि संसाधित पत्तियों में टैनिन की मात्रा 13.3 प्रतिशत तक होती है। सर्वोत्तम चाय कलियों से बनायी जाती है। चाय की खेती में लाल किट्ट तथा शैवाल जनित चित्ती रोग का प्रकोप होता है। चाय के लिए न्यूनतम वर्षा 125 से 150 सेमी होना चाहिए तथा तापमान 21 से 27 तक उपयुक्त होता है। विश्व में चाय के उत्पादन में भारत का पहला स्थान है। विश्व उत्पादन का 27 प्रतिशत और विश्व के निर्यात का 11 प्रतिशत भारत से प्राप्त होता है।
इतिहास
चाय के पौधे का उत्पादन भारत में पहली बार सन् 1834 में अंग्रेज़ सरकार द्वारा परीक्षण के रूप में व्यापारिक पैमाने पर किया गया था। यद्यपि जंगली अवस्था में यह असम में पहले से ही पैदा होती थी। इंग्लैण्ड को इसका निर्यात असम की चाय कम्पनी द्वारा किया गया। सन् 1815 में कुछ अंग्रेज़ यात्रियों का ध्यान असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों पर गयाए जिससे स्थानीय क़बाइली लोग एक पेय बनाकर पीते थे। भारत के गवर्नर.जनरल लॉर्ड बैंटिक ने 1834 में चाय की परंपरा भारत में शुरू करने और उसका उत्पादन करने की संभावना तलाश करने के लिए एक समिति का गठन किया। इसके बाद 1835 में असम में चाय के बाग़ लगाए गए। कहते हैं कि एक दिन चीन के सम्राट शैन नुंग के सामने रखे गर्म पानी के प्याले में कुछ सूखी पत्तियाँ आकर गिरीं जिनसे पानी में रंग आया और जब उन्होंने उसकी चुस्की ली तो उन्हें उसका स्वाद बहुत पसंद आया। बस यहीं से शुरू होता है चाय का सफ़र। ये बात ईसा से 2737 साल पहले की है। सन् 350 में चाय पीने की परंपरा का पहला उल्लेख मिलता है। सन् 1610 में डच व्यापारी चीन से चाय यूरोप ले गए और धीरे-धीरे ये समूची दुनिया का प्रिय पेय बन गया।
भौगोलिक दशाएँ
चाय की खेती के लिए जिन भौगोलिक दशाओं का ध्यान रखा जाता है, वह इस प्रकार हैं.
तापमान
चाय छाया प्रिय पौधा है, जो हल्की छाया में बड़ी तीव्रगति से बढ़ता है। इसके लिए मासिक तापमान 22° से 34° के बीच उपयुक्त माने गए हैं। जब उच्चतम तापमान 28° सेंटीग्रेड से नीचे गिर जाता है या औसत न्यूनतम तापमान 18° सेंटीग्रेड से नीचे हो जाता है, तो इसकी वृद्धि रूक जाती है। असम में 37 सेंटीग्रेड तापमान वाले भागों में भी चाय का उत्पादन किया जाता है। ठण्डी पवनें और ओले चाय के लिए हानिकारक होते हैं।
वर्षा
चाय उत्पादन के लिए आर्द्र जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। यदि बसन्त एवं शीत ऋतु में वर्षा हो जाए तो चाय की पत्तियों को वर्ष में 4.5 बार तोड़ा जा सकता है। वर्षा का औसत 150-180 सेण्टीमीटर होना चाहिए। इसका उत्पादन असम के पहाड़ी भागों में 125 से 375 सेण्टीमीटर तक में तथा दार्जिलिंग में 250 से 500 सेण्टीमीटर तक वर्षा वाले भागों में भी होता है। दक्षिण भारत में चाय क्षेत्रों में भी वर्षा होती है। चाय के पौधे के विकास के लिए जड़ों में जल का एकत्रित होना हानिकारक होता है। इसलिए चाय के उद्यान समुद्र तल से 610 से 1,830 मीटर ऊंचे पहाड़ी ढ़ालों पर ही मिलते हैं। हिमालय का दक्षिणी ढाल एवं पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल सूर्योन्मुखी हैं और अधिक ताप एवं जलवृष्टि दोनों ही प्राप्त करते हैं। इसके अतिरिक्त यह ढाल ध्रुवों की शीतल हवाओं से सुरक्षित रहता है। अतः इन ढालों पर चाय का उत्पादन किया जाता है।
मिट्टी एवं खाद
चाय का उत्पादन पहाड़ों के ढालों पर या ढलवाँ भूमि पर भी किया जा सकता है। यदि वर्षा के अतिरिक्त जल बहने की सुविधा हो। भारत के सर्वात्तम चाय के उद्यान असम व मेघालय के हल्के ढालू पहाड़ी भागों पर, जो कि 1200 से 1800 मीटर ऊंचाई तक है, पर पाए जाते हैं। इसके लिए मिट्टी गहरी और गन्धक वाली हानी चाहिए। बहुधा वनों की साफ़ की गयी भूमि चाय के लिए अच्छी मानी जाती है। उपजाऊ, मुलायम, बलुई मिट्टी में यदि रासायनिक तत्त्वों का अधिक्य हो तो अच्छी चाय पैदा होती है। असम के उद्यानों में चाय की झाडि़यों के छांटने से जो टहनियाँ गिरती हैं, उन्हें भूमि में फिर से रोप दिया जाता है। इससे मिट्टी को वनस्पति तत्त्व उपलब्ध होते रहते हैं, दार्जिलिंग की चाय इसलिए सुगन्धित होती है, क्योंकि वहाँ की मिट्टी में पोटाश और फॉस्फोरस अधिक मात्रा में पाया जाता है।
सस्ते श्रमिक
चाय की चुनाई के लिए सस्ते और अधिक मात्रा में श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि चाय की पत्तियाँ एक.एक कर तोड़ी जाती हैं, जिनसे कोमल पत्तियाँ नष्ट ना हों। अपनी कोमल अंगुलियों के कारण ही चाय के उद्यानों में स्त्री मज़दूर द्वारा पत्तियाँ तोड़ी जाती हैं। अब पत्तियाँ तोड़ने के लिए डायनमों से चलने वाली मशीनों का भी प्रचलन हो गया है।
चाय की कृषि
चाय को अक्टूबर.नवम्बर में बोया जाता है तथा पत्तियाँ चुनने का मौसम वर्ष में तीन से चार बार चलता है। पहली बार अप्रैल से जून तकए दूसरी बार जुलाई से अगस्त तक और तीसरी बार सितम्बर से अक्टूबर तक। पौधों को पहले छोटी क्यारियों में उगाया जाता है। फिर कुछ बड़ा होने पर अन्यत्र रोप दिया जाता है। समय-समय पर झाड़ी की छंटाई की जाती है, जिससे कोमल पत्तियाँ मिलती हैं तथा झाड़ी 1.5 मीटर से अधिक ऊंची नहीं होने से पत्ती चुनने में सुविधा रहती है। भारत में चाय का प्रति हेक्टेअर उत्पादन अच्छे से अच्छे उद्यान में भी 1800 किलोग्राम से अधिक नहीं है। देश में क्षेत्रवार प्रति हेक्टेअर उत्पादन इस प्रकार है. असम 1537, पश्चिम बंगाल 1411, त्रिपुरा 623, उत्तर प्रदेश 382, हिमाचल प्रदेश 132, तमिलनाडु 2002 कर्नाटक 1886 और केरल 1484 । सम्पूर्ण भारत का औसत अब बढ़कर 1800 किलोग्राम हो गया है। उत्तर भारत का 1800 किलोग्राम और दक्षिणी भारत का 2000 किलोग्राम हो गया है। इससे भी चाय उत्पादन में वृद्धि हो सकी है। भारत में चाय के उत्पादक क्षेत्र एक दूसरे से दूर.दूर हैं। उनकी मिट्टी तथा जलवायु भी एक दूसरे से भिन्न है, अतः चाय की किस्मों में भी अन्तर होता है। असम की चाय अपनी तेज सुगन्ध और रंग के लिए प्रसिद्ध है, परन्तु पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग क्षेत्र में पैदा होने वाली चाय बहुत सुस्वाद और मादक होती है। दक्षिणी भारत, विशेषतः नीलगिरी और काननदेवांस क्षेत्र, में पैदा होने वाली चाय अपनी रंगए मादकता और सुगन्ध के लिए प्रसिद्ध है। दार्जिलिंग की चाय न केवल भारत में ही वरन् विश्वभर में श्रेष्ठ मानी जाती है। इस समय चाय भारत की प्रमुख मुद्रादायिनी फ़सल है, जिसके निर्यात से भारत को 1960-1961 में 124 करोड़ रुपए तथा 2007-2008 में 2034 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई। विभिन्न करों के रूप में सरकार को 40 से 50 करोड़ रुपये की आय होती है। चाय पैदा करने में लगभग 10 लाख श्रमिक लगे हुए हैं, जिनमें से 4 लाख से अधिक तो असम के उद्यानों में ही कार्यरत है।
प्रकार
चाय की किस्म के अनुसार दो प्रकार की चाय होती है.
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चीनी किस्म इसकी झाड़ी डेढ़ से दो मीटर ऊंची होती है तथा पत्तियाँ कठोर और गहरे रंग की 4 से 7 सेण्टीमीटर लम्बी होती हैं। इसका प्रति हेक्टेअर उत्पादन कम होता है।
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असम किस्म इसकी झाड़ी 1.0 से 1.5 मीटर ऊंची होती है तथा पत्तियाँ अधिक मुलायम और हल्की हरे रंग तथा 1.5 से 3.0 सेण्टीमीटर लम्बी होती है।
भारत में प्रत्येक उद्यान के निकट ही चाय तैयार करने के लिए फैक्टरी होती हैए जहाँ भिन्न.भिन्न ढंग से हरी या काली चाय तैयार डिब्बों में पैक की जाती है।
जलवायु क्षेत्र
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उष्ण जलवायु की चाय क्षेत्रों के अन्तर्गत नीलगिरि पहाड़ियाँ, तमिलनाडु, तथा हिमालय के दक्षिणी ढाल सम्मिलित किए जाते हैं। यहाँ जो चाय पैदा की जाती है, उसे उष्ण जलवायु वाली चाय कहा जाता है। इन क्षेत्रों में साधारण किस्म की चाय अधिक होती है।
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शीतल जलवायु की चाय पूर्वी हिमालय की पूर्वी पहाड़ियों पर असम में विशेष रूप से पैदा की जाती है। साधारणतः यह 1200 से 1820 मीटर तक की ऊंचाई पर पैदा की जाती है। उत्तमता की दृष्टि से यह मध्यम श्रेणी की होती है।
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शीतोष्ण जलवायु की चाय उत्तराखण्ड के कुमायूं, देहरादून, हिमाचल प्रदेश के मण्डी, कांगड़ा घाटी एवं पश्चिम बंगाल के पहाड़ी ढालों की मध्यवर्ती भूमि पर उत्पन्न की जाती है। दार्जिलिंग, कुमायूं, कांगड़ा आदि ज़िलों में 2000 मीटर तक की ऊंचाई पर चाय पैदा की जाती है। इस क्षेत्र का उत्पादन कम होता हैए किन्तु चाय उत्तम प्रकार की होती है। देश में 13,256 चाय के उद्यान हैं। असम में चाय के 770 उद्यान, पश्चिम बंगाल में 302, हिमाचल प्रदेश में 1385, उत्तराखण्ड में 31, त्रिपुरा में 57, तमिलनाडु में 6568, केरल में 4112 तथा कर्नाटक में 15 उद्यान हैं। वर्तमान में चाय के अन्तर्गत 0.5 मिलियन हेक्टेअर भूमि है।
उत्पादक क्षेत्र
भारत में चाय के क्षेत्र हिमालय के सम्पूर्ण पहाड़ी प्रदेश में एवं हिमाचल प्रदेश और पंजाब से प्रायद्धीपीय भारत तक में, अर्थात् 330 उत्तरी अक्षांशों से 100 उत्तरी अक्षांशों के बीच पाये जाते है। चाय उत्पादक प्रमुख मेखला में 23° उत्तर और 32° उत्तर अक्षांशों के बीच ही केन्द्रित है। कुल क्षेत्र 75 प्रतिशत उत्तर पूर्वी भारत में है, जहाँ से कुल उत्पादन का लगभग 70 प्रतिशत प्राप्त होता है। दक्षिण भारत में कुल क्षेत्र का 20 प्रतिशत है, जहाँ से 25 प्रतिशत उत्पादन मिलता है। शेष 5 प्रतिशत क्षेत्र उत्तर और उत्तर पश्चिमी भारत में हैं, जहाँ से कुल उत्पादन का 5 प्रतिशत प्राप्त होता है। उत्तर.पूर्वी भारत में चाय का उत्पादन एक त्रिकोणात्मक क्षेत्र से प्राप्त होता है, जो दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल, सदिया, असम और चटगांव, बांग्लादेश में विस्तृत है। इस त्रिकोण के प्रमुख चाय उत्पादक क्षेत्र निम्न हैं:
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ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी जहाँ लगभग 676 चाय के उद्यान हैं और असम के कुल चाय के क्षेत्र का 40 प्रतिशत एवं उत्पादन का लगभग 44 प्रतिशत मिलता है। यहाँ मुख्य उत्पादक सदिया से गोपालपाड़ा ज़िले तक फैले हैं, जिनमें लखीमपुर, शिवसागर, धरांग, कामरूप, गोलपाड़ा और नवगांव ज़िले हैं। यहाँ चाय ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी किनारों पर 450 मीटर की ऊंचाई तक पैदा की जाती है। भूमि ढालू होने के कारण अतिरिक्त जल बहकर चला जाता है। वर्षा की मात्रा घाटी में 400 सेण्टीमीटर, दमदमा और डिब्रूगड़ में 250 और 225 सेण्टीमीटर होती है। तापमान जुलाई में 310 से 370 तक रहता है। यह कभी भी 100 से नीचे नहीं जाता है। पाला कभी नहीं गिरता। अधिकांश उत्पादन जुलाई से नवम्बर तक किया जाता है, लगभग 80 प्रतिशत।
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सुरमा घाटी में कछार ज़िले में टीलों पर चाय के उद्यान स्थित हैं। यहाँ जनवरी में तापमान 10°से जुलाई में 32°तक रहते हैं तथा वर्षा की मात्रा 300 से 400 सेण्टीमीटर तक होती है। यहाँ कुल चाय के क्षेत्र का 9 प्रतिशत है, जबकि उत्पादन कुल 5 प्रतिशत होता है।
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दुआर के अन्तर्गत एक 16 किलोमीटर लम्बी पट्टी में जो हिमालय की तलहटी में कूचबिहार और जलपाईगुड़ी में फैली है चाय कुछ ऊंचे ढालों पर पैदा की जाती है। वर्षा की मात्रा 300 सेण्टीमीटर से अधिक होती है किन्तु ढालू भूमि होने के अतिरिक्त जल बहकर चला जाता है। यहाँ के मुख्य उत्पादक क्षेत्र माल, चासला, नगरकाटा, मदारीहाट, पशुकोवा, जयन्ती, कत्रिक और कुमारग्राम हैं। ये सब मेच्छी और रैड़ाक नदियों के बीच क्षेत्र में हैं। यहाँ से 18 प्रतिशत चाय मिलती है।
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दार्जिलिंग ज़िले में चाय पहाड़ी ढालों पर सीढ़ीदार खेतों में 90 से 1980 मीटर ऊंचाई तक पैदा की जाती है। यहाँ वर्षा की मात्रा 300 सेण्टीमीटर तक होती है। यहाँ चाय कई प्रकार की मिट्टियों, भूरी, बलुई, दोमट से लगाकर पीली दोमट मिट्टी, लाल भूरी वन मिट्टी में पैदा की जाती हैं। मुख्य उत्पादक ज़िले जलपाईगुड़ी, पुरूलिया और कूचबिहार हैं।
उत्तरी भारत में चाय के अन्य उत्पादक क्षेत्र निम्नलिखित हैं:
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तराई क्षेत्र, जो हिमालय की तलहटी में उत्तराखण्ड एवं हिमाचल प्रदेश में फैला है। उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा और गढ़वाल ज़िले, हिमालय और शिवालिक पर्वतों के बीच कुमायूं, चमोली और पिथौरागढ़ में चाय पैदा की जाती है। यहाँ के मुख्य उद्यान पट्टी, बेनीताल, सिलकोट, चांदपुरमाला, मुजेती गड़ोली तलवारी और जूटानी हैं।
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झारखण्ड में चाय का उत्पादन छोटा नागपुर का पठार, पूर्णिया, हज़ारीबाग़, और रांची ज़िलों में सीमित क्षेत्रों में किया जाता है। यहाँ निम्न श्रेणी की चाय होती है।
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हिमाचल प्रदेश में चाय का उत्पादन कांगड़ा और मण्डी ज़िलों में है, यहाँ से भारत की लगभग 66 प्रतिशत हरी चाय उत्पन्न की जाती है।
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दक्षिण-पश्चिमी भारत में चाय का क्षेत्र सामान्यतः पश्चिम घाट के दक्षिणी भागों में सीमित है, जो 90 से 130 उत्तरी अक्षांशों के बीच है। यहाँ चाय के उद्योग घाट के ऊपरी भागों में लाल मिट्टी वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं। यहाँ के तापमान समान रूप से ऊंचे रहते हैं तथा वर्षा की मात्रा 400 सेण्टीमीटर तक होती है। 40 प्रतिशत चाय का उत्पाद, जुलाई से नवम्बर के बीच किया जाता है, शेष अप्रैल से जून तक।
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मणिपुर, त्रिपुरा, बिहार के किशनगंज और अरुणाचल प्रदेश भी थोड़ी मात्रा में चाय पैदा करते हैं।
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दक्षिण भारत के चाय उद्यान केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों में हैं। केरल में मध्य श्रावणकोर, काननदेवन्स, मालाबार, दक्षिणी केरल, वायनाद और कोच्चि ज़िलों में, तमिलनाडु मे अनामलय, नीलगिरि, वायनाद, मदुरै, कन्याकुमारी, कोयम्बटूर तथा तिरूनेलवेल्ली ज़िलों में और कर्नाटक में कुर्ग, शिवमोग्गा, काडूर, मैसूर, हसन और चिकमंगलुरू ज़िलों में चाय का उत्पादन किया जाता है।
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महाराष्ट्र में रत्नागिरी, कनारा और सतारा ज़िलो में भी कुछ चाय पैदा की जाती है।
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भारत में सर्वाधिक चाय असम एवं सुदूर पूर्वी भारत में उत्पादित होती है, जहाँ देश के उत्पादन की 59 प्रतिशत चाय उत्पादित की जाती है। चाय होती है। शेष 20 प्रतिशत में अन्य राज्यों का स्थान आता है, जिनमें दक्षिण उसके बाद पश्चिम बंगाल का स्थान आता है, जहाँ देश के कुल उत्पादन की लगभग 21 प्रतिशत भारत के केरल तथा तमिल नाडु का प्रमुख स्थान है, शेष राज्यों में कर्नाटक, उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश में चाय उगायी जाती है।
चायकाउत्पादन, खपतएवंव्यापार (मात्रा :मिलियन किलोग्राम; मूल्य : करोड़रु.) | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
उत्पादन | निर्यात | आयात | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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