
प्रस्तावना
कृषि, कृषक, कोशिश और खलिहान भारत की पहचान भी है और यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी है। भारत का ज़िक्र होते ही सबसे पहले जो ध्यान में तस्वीर बनती है वो खेतों की और खेतों में लहलहाती फसलों के बीच किसान की ही बनती है। इतिहास साक्षी है कि भारत के विकास की गौरवमयी यात्रा का मूल आधार कृषि है। भारत गांव की पृष्ठभूमि से आता है। महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत गांव में बसता है और कृषि उसकी आत्मा है। 2011 की जनगणना की बात करें तो 61.5 प्रतिशत हिस्सा कुल जनसंख्या का ग्रामीण भारत में निवास करता है। पारंपरिक खेती से होती हुई किसान की यह यात्रा आज भारत की उन्नत तकनीक के सहारे देश के लोगों का पेट तो भर ही रही है, साथ ही विश्व के अनेक देशों के लिए भी अन्न और अन्न से जुड़ी धनव्यवस्था में मुख्य भूमिका निभा रहा हैं। कृषि आरंभ से ही पेट भरने के पौराणिक तौर-तरीकों से लेकर वर्तमान के उभरते भारत में रोजगार के रुप में सबसे सशक्त माध्यम माना जाता रहा है । समय के साथ आए परिवर्तन ने हालांकि किसान को दुविधा में डाल रखा है और शहरीकरण की दौड़ में कृषि को स्थाई रुप से अब किसान सुरक्षित नहीं मान रहे, किंतु कृषि आधारित व्यवस्था में ही देश की तरक्की के बीज रोपित हो रहे हैं और अंकुरित भी। यही आधार है देश की भूख और बेरोजगारी को मिटाने का। यही मूलमंत्र है राष्ट्र की उन्नति और प्रगति को दिशा देने का। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत की सभ्यता कृषि प्रधान रही है। भारत के संदर्भ में यह बड़ी बात रही है कि आज ही नहीं अपितु वैदिक काल से ही कृषि की तकनीक यहां उन्नत रही है ।
इतिहास
सिंधु घाटी सभ्यता में भारतीय कृषि के श्रेष्ठ कारक या यों कह लें कि साक्ष्य मिले हैं। 9000 ईपू. भारतीय उपमहाद्वीप में मेहरगढ़ में इस प्रकार के साक्ष्य मिले हैं कि यहां जौ, गेंहुं, कपास आदि की उन्नत खेती की जाती थी । इसी खेती के साथ भेड़, बकरी, पालतु हाथी रखे जाते थे । इतना ही नहीं इस बात के प्रमाण भी मिले हैं कि वहां उन्नत बीजों की फसलों के साथ-साथ तकनीकी रुप से भी कृषि उपकरणों का उपयोग शानदार था ।

मोहनजोदड़ों के अवशेषों में भी कृषि भण्डारण के बड़े कक्षों का मिलना यह साबित करता है कि भारत में कृषि का इतिहास गौरवमयी रहा है। पांचवी शताब्दी ईपू कृषि यात्रा उत्तर भारत की ओर बढ़ी और कश्मीर तक जा पहुंची। इसमें सबसे अधिक प्रमाण सफेद सोना यानी कपास के मिलते हैं जिसने पूरी तरह से कृषि व्यवस्था को एक आयाम दे दिया था। इसके लिए आधुनिक चर्खों और मशीनों का आविष्कार भी कर लिया गया था। वैदिक काल में कृषि का इतिहास ऋग्वेद और अथर्ववेद की ऋचाओं में मिल जाता है। वहां हल का ज़िक्र है और फसलों की बात भी है। फसलों को चुहों और पंछियों से बचाने के लिए भी उपाय ढूंढे जा चुके थे। मध्ययुग को कृषि का स्वर्णिम काल भी कहा जाता है। लगभग 200-1200 ईसा पू. के इस कालखंड में विशेषकर दक्षिण भारत में चावल, मक्का, जौ, गेंहूं, बाजरा, काली मिर्च गन्ना आदि को उगाने और संरक्षित करने में भारत एक सफल दिशा में निरंतर चलायमान हो चुका था। मुगलकाल को ब्रिटिशकाल के नाम से भी जाना जाता है। 1200-1757 ईसा पू. के इस काल में कृषि में फारसी तकनीक का प्रवेश हो चुका था। यहां यह कहना सही होगा कि इस समय में सिंचाई साधनों को पनपने का अवसर मिल चुका था और इसके कारण कृषि उन्नति के आसमान पर पहुंच गई। मुगलकाल के अवसान के साथ ही पुर्तगालियों का भारत में प्रवेश हुआ और कृषि में तंबाकु की खेती ने पूरे भारत मे जड़ें जमा ली। फसलों को उगाने में तकनीक आधारित कृषि ने स्थान ले लिया । इससे बाहरी ताक़तों को भारत आने का आकर्षण प्राप्त हुआ। काली मिर्च की खेती ने तो यूरोपियन को भारत आने के दरवाज़े खोल दिए। फिर आरंभ हुआ ब्रिटिशकाल जिसे आधुनिक काल के नाम से जाना जाता है । यहीं से आरंभ होता है भारत की उन्नत कृषि के इतिहास को कष्टकारी बनाने की मुहिम यानी यह दौर कृषि के लिए बहुत सी चुनौतियां लेकर आया। तब से वर्तमान तक हम कृषि-कृषक की समस्याओं पर आमने-सामने हैं और जूझ ही रहे हैं। भारत विविधताओं से भरा देश है। इसमें जितना विशाल साम्राज्य खेती व्यवसाय का फैला है उतना ही बड़ा क्षेत्र इससे जुड़ी समस्याओं से रहा है। कृषि क्षेत्र में अंग्रेजो के आने से पहले की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी। हां, टोडरमल ने अकबर शासन में भू-राजस्व प्रणाली की नींव अवश्य रखी जो आगे चलकर हमारी भू-व्यवस्था के लिए उदाहरण के तौर पर देखी गई। किंतु अंग्रेजों ने भारत को सोने की चिड़िया से कंगाल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिसमें सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र कृषि ही है क्योंकि हम कृषि से ही सोने की चिड़िया कहे जाते रहे हैं ।
कृषि का वर्तमान एवं चुनौतियां
1. वर्तमान
भारत में कृषि केवल व्यवसाय नहीं, कृषि यहां की संस्कृति और आजीविका का धर्म है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था भारत की प्रगति की साक्षी रही है किंतु इतिहास बताता है कि कृषि आरंभिक दौर से जैसे ही वर्तमान तक बढ़ी, यह सदा से ही राजनैतिक परपंचों और व्यवस्थाओं की चक्की में पिसती हुई अपनी मंज़िल तक पहुंची है। सीधा अर्थ किसान की दुर्दशा से है। सदन की बहस से लेकर, किसानों के लिए लोक-लुभावने प्रस्तावों तक केवल और केवल मिला है तो चालाक व्यवस्था का झुनझुना। धरातल पर किसान की दशा अधिक नहीं सुधरी है, यदि थोड़ा अंतर पड़ भी रहा है तो वो मैदानी राज्यों के किसानों के लिए कुछ हद तक सुखद होता है किंतु पहाड़ी राज्यों के किसान तो आज भी खेत में बहाए पसीने की कीमत को वसुलने में नाकाम है। उनका संघर्ष तो बढ़ता गया समय के साथ लेक़िन चुनौतियां ज्यों की त्यों ही रहीं। उनके लिए वायदों और योजनाओं का पिटारा बस हर बार खुलते-खुलते रह जाता है। खुल गया तो उसमें कुछ सस्ते से खिलौने निकलते हैं जो पीं पीं की आवाज़ करने के बाद बंद हो जाते हैं। इससे किसान का गुजारा नहीं हो सकता। बैंक खातों में किसानों को खुश करने के लिए कुछ पैसे डाल देने से क्या किसान खुशहाली के रास्ते पर चल पड़ेगा ? या फसलों पर न्यूनतम मुल्य निर्धारण के वायदों से खुश होगा ? दरअसल सरकारें भी गंभीरता से कृषि से जुड़ी समस्त समस्याओं का समाधान चाहती है किंतु उसके लिए उठाए गए क़दम और प्रयास नाकाफी है। यही कारण है कि वर्तमान में कृषि की उन्नत यात्रा में स्थान-स्थान पर पड़ाव हैं। ये पड़ाव आढ़तियों की मनमानी से लेकर खेतों से फसलों को बाज़ार उपलब्ध करवाने तक शामिल हैं ।

शहरीकरण के कारण किसान भी भ्रमित है क्योंकि वह अब कृषि को स्थाई रोजगार के लिए असुरक्षित समझ रहा है। उसके खेतों को न तो पर्याप्त सिंचाई ही पहुंच पा रही है और न ही सब्सिडी पर बेहतरीन कृषि उपकरण। जहां ये उपलब्ध हो जाते हैं वहां खेतों को जंगली जानवरों से सुरक्षा नहीं मिल पा रही है। ऐसे में इन सारी समस्याओं के बाद यदि किसान फसल तैयार कर पाता है तो उसे मार्केट की चिंता सताती रहती है उसे अपनी फसल की लागत का मुल्य ही नहीं मिल पा रहा है। इसे बिचौलियों ने किसानों को भ्रमित कर उनकी गाढ़ी कमाई पर कुंडली मार रखी है ।
2. चुनौतियां
2.1 उन्नत बीज एवं कृषि उपकरण लघु एवं सीमांत किसानों के सामर्थ्य से बाहर
सबसे पहले किसान को फसलों के लिए सही चयन की प्रक्रिया को अपनाने की ज़रुरत रहती है। उन्नत बीज की उपलब्धता अभी ग्राम केन्द्रों पर तो गाहे-बगाहे मिल जाती है किन्तु आम किसान को गांव तक यह पूरी तरह से मिल पा रही है, इसमें संदेह भी है और इस सच के पीछे तथ्य भी है। बीजों की उन्नत किस्म संबन्धित विभाग को आम किसानों तक सब्सिडी पर पहुंचाने की प्रक्रिया बेहद जटिल है। कभी-कभार यह सूचना किसान प्राप्त करता है कि खण्ड स्तर पर बीज मिल रहा है, वहां से प्राप्त कर लें।

एक किसान जब तक कई किलोमीटर का सफर कर वहां पहुंचता है तो कभी बीज प्राप्त कर लेता है कभी उसकी अनुपलब्धता उसे निराशा में डाल देती है। पंचायतों को कई बार इसमें शामिल किया जाता रहा है। पंचायत के प्रतिनिधि अपने समर्थक किसानों के चयन होने के बाद सूचना को आगे प्रेषित करते हैं जिससे आम किसान इससे वंचित रह जाता है। यहां यह कहना भी सही होगा कि उन्नत बीजों के साथ ही उसका समान एवं सरल वितरण किसान को इस समस्या से बाहर निकालने में कारगर होगा जबकि ऐसा नहीं हो रहा है।
कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 10 जून 2022 को समाप्त हुए सीजन के दूसरे सप्ताह तक 66.52 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फसलों की बुआई हुई हैं, जबकि पिछले साल 2021 में इन दो सप्ताह के दौरान 85.26 लाख हेक्टेयर में फसलों की बुआई हो चुकी थी। मतलब, इस साल 18.74 लाख , 21.98 प्रतिशत, हेक्टेयर क्षेत्र में फसलों की बुआई नहीं हुई है। |
यही स्थिति कृषि उपकरणों की भी है। कृषि उपकरण कृषि केंद्रों पर या फिर खण्ड स्तर पर उपलब्ध होते हैं और वो भी कई बार एक या दो वर्ष में एक बार बमुश्किल उपलब्ध हो जाते हैं। उनके लिए सब्सिडी की प्रक्रिया बेहद जटिल रखी गई है। किसान एक बारगी उसे पूरा नहीं कर पाता है। बैलों से खेती का चलन हालांकि अब पहाड़ों में ही शेष हैं किंतु वहां भी अब बैल का स्थान छोटे टिल्लर ले रहे हैं और यदि ज़मीन समतल है तो बड़े ट्रैक्टर भी किसानों की पसंद बनते जा रहे हैं। सब्सिडी प्रक्रिया यदि सरल न हुई तो खेतों के लिए आम किसान इन उपकरणों के बारे में सोच भी नहीं पाएगा और कहीं न कहीं वो उसकी आर्थिकी के साथ-साथ देश की आर्थिकी को भी कमज़ोर कर रहा है। हल, गैंती, खिलने, कुदाली, पंजी आदि के लिए दिल्ली से मंत्रालय का धन सब्सिडी के रुप में राज्यों के विकास खंडों तक तो पहुंच जाता है लेक़िन उसके बाद वो कितना लाभार्थी किसानों तक पहुंचता है, यह बात तथ्यों पर कही जा सकती है। चयनित प्रतिनिधियों अथवा किसान विकास समितियों की भूमिका इसमे बेहद निराशाजनक है।

गांव स्तर पर यह देखने को मिलता है कि जहां पर ये समितियां बनी हैं वो इन सब्सिडी पर मिलने वाले उपकरणों को अपने गांव तक और उनसे संबद्ध चहेते किसानों तक तो वितरित कर देते हैं लेक़िन आम किसान की पहुंच वहां तक नहीं हो पाती। सिंचाई के लिए मिलने वाली सब्सिडी आधारित प्लास्टिक पाईपें आज भी गांव में चोर बाज़ारी के आधार पर बंदरबांट की जाती है। जो किसान खेती भी कम करता है और बाहर दिहाड़ी पर काम करता है वह भी कई सौ फीट पाईपों को अपने गोदामों में भर कर रख लेता है। उसका उपयोग तक नहीं हो पाता क्योंकि निःशुल्क मिल रही है और उसके लिए जाति अथवा बीपीएल की औपचारिकता करनी होती है। औपचारिकता पूर्ण कर वह गाड़ी भरकर पाईप को स्टोर कर लेता है जबकि उसी गांव के दूसरे किसान जो खेतों में काम कर रहे हैं उन्हें पाईप नहीं मिल पाती हैं। यह गांव का भयावक सत्य है। पंचायत के प्रतिनिधि इसमें शामिल होते हैं और ग्रामीण किसान समितियों के माध्यम से यह सब धांधलियां की जाती है।
2.2 सिचांई हेतु वर्षाजल पर निर्भरता

देश में सिंचाई के लिए सरकारें अथक प्रयास कर रही हैं और इसके लिए विभिन्न योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए वो किसानों तक पहुंच बनाने की काशिश भी कर रही हैं किंतु कृषि का एक बड़ा हिस्सा आज भी अपनी खेती के लिए आसमान की ओर एक टक देखता है और उसी के अनुसार फसलों की बुआई करता है। बुआई होने के बाद उसकी चिंता दोगुनी बढ़ जाती है। वर्षा न हो तो सब कुछ व्यर्थ हो जाएगा। मानसून आधारित खेती थोड़ा बहुत अनाज तो पेट भरने के लिए दे सकती है किंतु वो स्थाई रोजगार का किसान का सपना पूरा नहीं कर सकती है। इसके लिए सरकार ने हर खेत तक पानी पहुंचाने का हालांकि प्रयास तो किया है किंतु अभी धरातल पर यह कामयाब होता कत्तई नहीं दिख रहा है। गांव में सिंचाई की योजनाओं को बनाने के बाद भी वहां जल का वितरण व्यवस्थित नहीं है। जल की मात्रा भी कम है। बहुत सारी योजनाएं ऐसे स्थानों पर बना दी गई हैं जिन स्रोतों में पानी होता ही नहीं है। वहां के पंपहाउस सूखे पड़े हैं और मशीनें ख़राब हो रही है। गांव में सिंचाई की योजनाओं को सही प्रकार से खेतों तक भी नहीं पहुंचाया गया है। आधे-अधूरे खेतों को पानी की आपूर्ति ही हो पाती है। इससे किसान पानी की प्रचुर मात्रा प्राप्त करने में असफल हुआ है। ऐसे बहुत से जलस्रोत हैं जहां बारहमासी जल की उपलब्धता है किंतु व्यवस्थात्मक प्रक्रिया इतनी जटिल है कि वहां सिंचाई की योजना को अमलीजामा पहनाने में दिक्कत हो रही है। फाइलों को पास करवाना, विभाग से सिंचाई योजना को स्वीकृत करवाना, धरातल पर क्रियान्वयन करना इतना आसान नहीं होता है, इसलिए समुचित योजना का बना पाना भी कठिन हो जाता है। किसान जब तक सूखी ज़मीन पर हल चलाएगा, उसका आत्मविश्वास कृषि आधारित व्यवस्था पर आत्मसंतुष्टि का आधार कभी नहीं बन पाएगा।
2.3 कृषि भूमि ग़ैर कृषि कार्यों हेतु अंधाधुंध हस्तांतरण
बढ़ते जनसांख्यिकी दबाव के कारण अब शहरों का विस्तारीकरण गांव की ज़मीन को छूता जा रहा है। किसानों ने संपर्क सड़कों के साथ लगती कृषि भूमि को बेचना आरंभ कर दिया और इससे कृषि भूमि का रुपांतरण होना आरंभ हुआ। अच्छी कीमत मिल जाने पर खेतों को बाहरी लोगों ने खरीद लिया और वहां होटल, कार्यालय अथवा अन्य इकाईयों का निर्माण कर कृषि भूमि ख़त्म कर दी है। कुछ आंकड़ें सरकारी बेवसाइट पर इसकी दूर्दशा को दिखाते हैं। 1970-71 में औसत भूमि धारण 2.28 हेक्टेयर था जो वर्ष 1980-81 में घटकर 1.82 हेक्टेयर और वर्ष 1995-96 में यह 1.50 हेक्टेयर हो गया था। इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि भूमि हस्तांतरण में कितना बड़ा अंतर आया है।
2.4 विपणन व्यवस्था किसानों के हित में नहीं
इन सारी समस्याओं पर एक वृहद् चर्चा एवं मंथन के बाद कृषि के लिए सबसे बड़ी और गंभीर चुनौती फसलों की मार्केटिंग की है। फसलें तैयार करने के बाद कृषक उसे मार्केट तक ले जाने में पसीना बहाता है। पसीना बहाना इसलिए कहना पड़ता है क्योंकि यहीं से उसकी चिंता शुरु हो जाती है। महीनों फसल की बुआई से लेकर कटाई के बीच लागत का बोझ उठाए किसान चाहता है कि उसे अपनी फसल का अच्छा दाम मिले लेकिन बिचौलियों और आढ़त के फेर में यह आज तक संभव नहीं हो पाया है। उसकी फसल को घर से ही उठा लिया जाए अथवा वो स्वयं उसे लेकर मंडी तक पहुंचे, दोनों की स्थितियों में आढ़त का फेर और बोलियों की बौछार उसकी लागत की कीमत उसे नहीं दिला पाती है किंतु यह बड़ी विडंबना है कि बोली लग जाने के बाद वही उत्पाद आम लोगों की खरीद की पहुंच से बाहर हो जाती है। किसान मंडी से बाहर भी नहीं आ पाता है कि उससे 20 रुपये प्रति किलो के हिसाब से ख़रीदी गई भिन्डी उसके सामने ही 60 रुपये प्रति किलो बिकनी शुरु हो जाती है यानी बीच का 40 रुपया उसके खून-पसीने की गाढ़ी कमाई कोई और ही उड़ा ले जाता है।

बेशक हम उन्नत भारत में प्रवेश कर चुके हैं लेकिन अभी तक इस व्यवस्था से बाहर नहीं आ पाए हैं। बहुत जगह तो किसानों की फसलों के लिए मंडी ही उपलब्ध नहीं हो पाती है। मंडी की व्यवस्था आज भी सरकारों के लिए चुनौती हैं। मैदानी क्षेत्रों में जहां अनाज स्टोर की कमी और खुली मंडी के कारण वर्षा में बह और सड़ जाता है तो वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में मंडी दूरस्थ होने के कारण किसानों के लिए समस्या बन जाती है। यहां आधारभूत बात ये है कि आज भी किसानों को समुचित और वांछित न्यूनतम समर्थन मुल्य प्राप्त नहीं हो पाया है। इससे किसान हताश भी हैं और निराश भी और यही निराशा भविष्य की उन्नत कृषि के सपनों की उड़ान पर भारी दिखती है। किसान चाहता है कि उसकी फसल को खेतों में खरीदकर वहीं उचित दाम प्राप्त हो, ताकि उसका मंडी अथवा मार्केट की चिंता से बाहर कृषि पर फोकस करने के लिए समय का सदुपयोग हो। उसे अपनी फसल के अच्छे दाम कैसे प्राप्त हों, इसका ज्ञान बहुत कम होता है। उसे अच्छा ज्ञान है खेत, फसल और खेती का। मार्केट का जो आढ़ती ज्ञान रखते हैं वो उनको कृषकों की मेहनत का एहसास नहीं है। उनको पता है कि किसान की फसलों को कैसे कम से कम दामों में खरीदकर अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जाए। यही बिचौलिए इस व्यवस्था को किसानों की दूर्दशा बनाने में ज़िम्मेवार हैं।
कृषि बाज़ार व्यवस्था में किसान तथा उपभोक्ताओं के बीच मध्यस्थ काफी जरुरी होते हैं। परन्तु अभी हाल में जो बाजार व्यवस्था है इसमें मध्यस्थों की संख्या जरुरत से अधिक है। जिसके कारण किसानों से उपभोक्ताओं तक कृषि उत्पादों के पहुंचने तक उनकी कीमत में कई गुना वृद्धि हो जाती है। |
2.5 ग्रामीण–शहरी प्रगति में बड़ा अंतर
ग्रामीण भारत धीरे-धीरे तरक्की की रफ्तार में हैं जबकि शहरों का विकास अति तीव्र गति से हो रहा है। भारत ने स्मार्टसिटी जैसी परियोजनाओं के साथ शहरों में कंकरीट का जाल बिछा दिया है। शहरों के विकास के सामने गांव का विकास उस गति को छू भी नहीं पा रहा है। ऐसे में किसान खेतों से अधिक शहरों को रोजगार की दृष्टि से सुरक्षित मान कर चल रहे हैं। नतीजन, गांव से नौकरी और रोजगार के लिए पलायन हो रहा है। ये अलग बात है कि वहां भी मनवांछित रोजगार की गारंटी नहीं है। वहां भी दुकान, छोटी-मोटी कंपनी या अन्य स्थलों पर आठ से 10 घंटे काम करना पड़ता है। किंतु शहर का एक आकर्षण है। इसलिए वो लुभाता भी है और रोजगार के प्रति सुरक्षा की भावना भी जगाता है।

गांव के लिए अभी इस दिशा में ज़्यादा कुछ हो नहीं पाया है। गांव में किसान प्रकृति पर निर्भरता और जंगली जानवरों से अपने लिए भी कुछ बचा नहीं पा रहा है तो देश का पेट कैसे भरेगा ? उसे खेतों से कहीं अधिक शहरों में रोजगार करने पर अधिक सुरक्षा की भावना सही लगती है।
2.6 स्मार्टसिटी से स्मार्टविलेज तक की परिसंकल्पना
स्मार्टसिटी की तर्ज़ पर स्मार्टविलेज की संकल्पना ही इस दिशा में कारगर साबित होगी। शहर तो कंकरीट के जंगल बन ही चुके हैं और वहां का विकास अब एक दिशा में आगे बढ़ चुका है। किंतु गांव में मनरेगा अथवा वित्तायोग के धन से विकास कार्यों की गति एक सीमित दायरे में हो रही है और साथ ही वहां रोजगार के अवसर भी बेहद कम हैं। वहां रोजगार का एक मात्र साधन कृषि है। कृषि से ही किसान और उसका परिवार अपनी रोजीरोटी को पैदा कर रहा है। किंतु पहले बताई गई समस्यायों के कारण कृषि भी उसे एक सुरक्षित माहौल देने में सफल नहीं हो पाई है। यही कारण है कि स्मार्टसिटी की तर्ज़ पर स्मार्टविलेज की ओर यदि सार्थक पहल की जाए तो गांव में प्रगति का दौर आएगा और उस प्रगति में सबसे पहले कृषि क्षेत्र ही फले-फुलेगा।

खेतों की मुरम्मरत से लेकर आधुनिक उपकरणों का उपयोग उसे बेहतर बनाएगा। जंगली जानवरों से खेतों को बचाने के लिए कारगर उपाय और धन की व्यवस्था होने से गति मिलेगी। इसलिए अभी सरकार की ये पहल जो योजनाओं में बंधी होकर और व्यवस्था की प्रक्रिया की चक्की में पिसते हुए आगे बढ़ रही है, वो नाकाफ़ी है।
2.7 घातक ही साबित हुआ उर्वरक प्रयोग

एक बात ये भी ग़ौर करने वाली है कि अधिक पैदावार एवं शीघ्र फसल की चाह ने किसानों को विभिन्न प्रकार के उर्वरकों के प्रयोग के लिए उकसाया। इससे किसानों ने अपने खेतों में रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग करना शुरु किया जो आज भी बदस्तूर जारी है। इससे खेतों की मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम होती गई और खाद्यान्न भी गुणवत्ताहीन होता गया। एक समय के बाद खेतों से फसलों की मात्रा भी घटना शुरु हो जाती है क्योंकि मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बेहद क्षीण हो जाती है। इससे उत्पादकता में अंतर आया और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी देश में आंकड़े चौकाने वाले ही आते हैं। मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखना भी एक चुनौती है। रासायनिक खादों के अत्यधिक प्रयोग होने के कारण भारत सरकार को रासायनिक खादों का आयात करना पड़ता है जिसको किसानों तक पहुंचाने के लिए अनुदान के रुप में हज़ारों करोड़ रुपया प्रतिवर्ष आर्थिक बोझ सहना पड़ता है। विगत तीन वर्षा में रासायनिक खादों पर अनुदान राशि इस सूचीनुसार समझी जा सकती है।
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2021 | 6.72 million metric tons | at least $21.8 billion (Rs 1,70,922 crore) | ₹1.05 lakh crore in the Budget |

In financial year 2021, India imported approximately 6.72 million metric tons of nitrogenous fertilizers. That same year, the South Asian country also imported 3.32 million metric tons of phosphate fertilizers and 3.23 million metric tons of potash.

वित्त वर्ष 2022 में आंकड़ें……..
रासायनिक खादों के आयात पर भारी भरकम विदेशी मुद्रा का देश से बाहर प्रवाह हमारे देश की आर्थिकी पर एक बड़ा बोझ है एवं जिसके कारण डॉलर के बनिस्बत रुपया अधिक कमज़ोर होता जा रहा है।
2.8 मृदा जांच किसानों के खेतों तक पहुंचे
यहां बड़ी बात यह है कि अधिक फसल की पैदावार के लिए यह आवश्यक है कि किसान अपने खेतों की मिट्टी के गुणों को समझें। प्रत्येक खेत में मिट्टी के गुण भिन्न-भिन्न होते हैं। अब हो क्या रहा है कि किसान उचित जानकारी के अभाव में जिस खेत में लहसुन का अच्छा उत्पादन हो सकता है वहां मक्की की फसल बोई जा रही है और जहां मक्की की फसल अच्छी हो सकती है वहां लहसुन की बुआई करता है। इस प्रकार की कृषि अज्ञानता फसल की उत्पादकता को प्रभावित कर रही है हालांकि मृदा जांच केन्द्र बहुत से विकास खण्ड स्तर तक स्थापित हुए हैं लेक़िन उन जांच केन्द्रों तक प्रगतिशील किसान ही पहुंच पा रहे हैं। इस विषय पर किसानों से जब चर्चा की गई तो ज्ञात हुआ कि उनको इस जानकारी का अभाव है कि किस फसल के लिए मृदा जांच कब की जाए और सैंपल कैसे लिया जाए ?

जिन किसानों को थोड़ी बहुत जानकारी है उनका अनुभव है कि मृदा जांच रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए चक्कर लगाने पड़ते हैं। अब यही प्रक्रिया रही तो किसान गांव में मृदा जांच की जानकारी के अभाव में खेती कर रहा है और जिसके कारण उत्पादकता कम हो रही है और जिसका दुष्प्रभाव उसकी आमदनी के साथ-साथ देश की आर्थिकी पर भी पड़ रहा है।
2.9 मृदा जांच के बाद मिट्टी पोषण उपायों का अभाव
मृदा जांच के बाद ही पता चल पाएगा कि किस खेत की मिट्टी में कौन से पोषक तत्वों की कमी है और उस मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने के लिए क्या उपाय करने हैं? किसानों के लिए इस प्रकार की जानकारी बेहद लाभप्रद साबित होगी। यह प्रक्रिया बेहद सरल है किंतु इसके लिए अभी प्रयास ही नहीं किए गए हैं।

क्षेत्रवार मिट्टी के गुण एवं अत्यधिक उर्वरकों का प्रयोग किसानों के लिए अब गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। इसके समाधान के लिए बेहतरीन उपायों के साथ किसान के खेतों तक पहुंचना एवं उनसे संवाद कर आगे बढ़ने की आवश्यकता है क्योंकि यही कारण अब किसानों की निराशा के लिए भी उत्तरदायी हैं और किसानों के शहरी पलायन की ओर भी इसी समस्या का काफी हद तक हाथ रहा है।
3. भण्डारण–गंभीर चुनौती
यहां प्रश्न यह है कि फसलों की पैदावार को बढ़ाने के बाद भी उसके भण्डारण में हम आज तक स्थाई हल क्यों नहीं निर्मित कर पाए? हम आए दिन देखते हैं कि देश के भिन्न-भिन्न राज्यों में अनाज की बोरियां खुले आसमान के नीचे पड़ी है और बारिश आदि में वहां तालाब में तैर रही होती हैं। अनाज मैदानों में ढेर के रुप में पड़ा होता है। भण्डारण एक बड़ी चुनौती है। इसका वर्गीकरण भी हम नहीं कर पाए हैं और जब तक अन्न के भण्डार विकेन्द्रित होकर स्थाई रुप से सुरक्षित स्थलों पर नहीं रखे जाएंगे तब तक इसका समाधान संभव नहीं। एक स्थान पर अधिक अनाज के जमा करने पर यह स्थिति बन जाती है कि उसे खुले में बाहर मैदानों में ही रखना पड़ता है। यह स्थिति पूरे देश में है। किंतु छोटे राज्यों में भी छोटे किसानों के घर पर भी इस समस्या का समाधान अभी किया जाना शेष है। इन किसानों के खेतों में अधिक पैदावार होने पर अन्न अथवा फसल को रखने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं होता है और अन्न को या तो मज़बूरी में समय से पहले ही बेचना पड़ता है अथवा खुले आंगन में ही रखना पड़ता है ।

मौसम की मार यदि पड़ जाए तो सारा अन्न बर्बाद हो जाता है। भण्डारण की ओर अब सरकार को गंभीरता से आगे बढ़ने की आवश्यकता है। हमें यह आंकड़ा भी चौंका सकता है कि देश में खाद्यान्न का 60 प्रतिशत तो प्रभावी उपायों की अभाव में नष्ट हो जाता है। 90 प्रतिशत खाद्यान्न उचित प्रकार से प्रबंधन के अभाव में बाज़ार तक नहीं पहुंच पाता है। यदि हम भण्डारण को सुरक्षित एवं सुनिश्चित नहीं बना पा रहे तो किसान भी तब तक अपनी फसलों/अन्न को देश की भूख मिटाने के साथ ही अपने रोजगार से निश्चिंत नहीं हो पाएगा।
3.1 अप्रत्याशित जनसंख्या और घटते खेत
हालांकि यह बड़ी असमंजस वाली स्थिति है कि जनसंख्या की बेतहाशा वृद्धि हमारे खेतों और किसानों की समस्या का एक बड़ा कारण बनती जा रही है। परिवार बढ़ रहे हैं तो भूमि आबंटन भी उसी प्रकार से हो रहा है यानी खेत भी दो या तीन भागों में विभाजित हो जाता है। अब समस्या यह है कि उस खेत में आधुनिक उपकरणों से खेती नहीं हो पाती है और फसलों की पैदावार प्रभावित हो रही है ।

इससे किसानों के पास खेत का छोटा आकार होने के कारण उनका व्यवसायिक आकर्षण भी कम होता जा रहा है जिसके कारण भूमि बंज़र होती जा रही है। यह स्थिति पहाड़ी राज्यों में अधिक देखने को मिल रही है ।
3.2 कृषि में निवेश का अभाव
भारत कृषि प्रधान देश होने के साथ ही यहां विश्व का 10वां सबसे बड़ा कृषि योग्य भू-संसाधन भी मौजूद हैं। कृषि निवेश की समस्या यहां अधिक इसलिए प्रभावी है क्योंकि इतने बड़े भू-भाग पर कृषि उपकरणों, कृषि उन्नत बीजों, सिंचाई व्यवस्था के उपायों, भण्डारण एवं अन्य समस्याओं को सरकार केवल अपने स्तर पर तीव्रता से आगे नहीं ले जा सकती है। इसमें बाहरी निवेश के लिए निवेशकों को लाना ही होगा। ऐसे बहुत से देश भी हैं जो भारत में निवेश के लिए तैयार है और कुछ देश तो इसके लिए भारत के साथ काम कर भी रहे हैं।

निवेश पर हो रहे अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों की योजनाओं को अब धरातल पर लाने की आवश्यकता है। देश में किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान से बचाने, बायोफूड, सिंचाई आदि समस्त समस्याओं पर निवेश की संभावनाओं के बाद समाधान ढूंढने की ओर पहल करनी होगी। नहीं भूलना चाहिए कि भारत में 1500 लाख करोड़ का टर्नओवर अकेले कृषि/खाद्यान्न में हैं । इसके लिए बाहरी निवेश के साथ-साथ निजी निवेश की संभावनाओं को भी तलाशना एवं बढ़ाना ज़रुरी होगा ।
3.3 फसल बीमा पर सुस्त रवैया

देश में तमाम कृषि आधारित समस्याओं के बावजूद हर परिस्थिति में कृषि क्षेत्र ने आयाम रचने के प्रयास लगातार जारी रखे हुए हैं लेक़िन यहां फसलों के लिए प्रभावी बीमा योजनाओं का अभाव इसे असुरक्षित घेरे में लाता है । फसलों का बीमा किसानों के लिए वरदान साबित हो सकता है लेक़िन इसे विशिष्ट स्थान सरकार अभी दे नहीं पाई है और चुनिंदा फसलों पर बीमा करने की पहल नाक़ाफी है । उस पहल को भी यर्थात् में बदलने के लिए किसान के पसीने छूट जाते हैं। मौसम आधारित कृषि व्यवस्था में तीनों मौसम में फसलों को अपने ख़तरे रहते हैं । विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में सर्दियों में पानी की कमी और पाला/फ्रॉस्ट के कारण फसलों की उत्पादकता प्रभावित होती है । वहीं गर्मियों में सिंचाई हेतु पानी की कमी बड़ी समस्या है और फसलों का खेतों में ही सूख जाना किसानों की निराशा का कारण है । सूखा आज भी देश में अधिकतर कृषि क्षेत्र को अपने साये में लिए हुए है । उसके बाद बरसात में अत्यधिक जलप्रवाह फसलों को बर्बाद कर देता है । देश में बाढ़ तो खेत-फसलों को लील ही लेती है लेक़िन पहाड़ी क्षेत्रों में तो खेतों से ऊपरी गुणवत्ता आधारित मिट्टी का क्षरण कर उसे बहा ले जाती है । फसलों को कीट खा जाते हैं या कोई रोग लग जाता है अथवा असमय ओलावृष्टि या तुफान आदि से नुकसान हो जाता है जिसके लिए पर्याप्त राहत का प्रावधान नहीं किया गया है । इस प्रकार प्रकृति का प्रकोप किसानों को पूरे वर्ष प्रभावित करता रहता है और किसानों की मेहनत बेकार हो जाती है । इसलिए फसलों का प्रभावी बीमा न होना कहीं न कहीं किसानों के लिए मुसीबत बन कर सामने आता है ।
अभी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत हालांकि किसानों के लिए राहत लेकर आई है किंतु इसमें किसानों द्वारा प्रीमियम जमा करने के बाद आपदा में राहत मिलने की प्रक्रिया काफी जटिल होती है । योजनाएं तो सरलता से लागु करने के आदेष जारी हो जाते हैं किंतु राज्यों में वही योजना ज़िला अथवा खण्डस्तर पर आते आते जटिल होती जाती है और किसान को दस्तावेज़ी कार्यवाही मे इतना उलझाया जाता है कि वो बीमा योजना से परहेज़ करने लग जाता है, हालांकि इस योजना में किसानों से बेहद कम दामों पर फसलों के लिए बीमा प्रीमियम लिया जाता है । पहले इस योजना में कम भुगतान की व्यवस्था थी लेकिन अब पूरे दावों पर भुगतान की व्यवस्था की गई है किंतु किसान इसे व्यवहारिक रुप से जटिल प्रक्रिया का हिस्सा मानते हैं । इस योजना में उन किसानों को भी समाहित किया गया है जो कृषि ऋण लेते हैं हालांकि इसको अधिसूचित क्षेत्रों एवं अधिसूचित किसानों के लिए ही प्रारंभिक रुप से लागु किया गया है जो कि अधिसूचित फसलों पर ही लागु भी हैं । इस योजना का पूरा नियंत्रण कृषि एवं कल्याण मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है । इसे सार्थक पहल कहा जा सकता है किंतु यहां यही बात इसे कमज़ोर करती है कि यह सभी फसलों, सभी क्षेत्रों एवं सभी किसानों पर लागू नहीं हैं ।
3.4 सामान्य फसलों पर निर्भरता गांव में छोटे किसानों की एक बड़ी तादात सामान्य फसलों पर केवल अपने परिवार के अन्न तक सीमित है । इससे उसके लिए स्वरोजगार और अपना अर्थतंत्र मज़बूत करने मे सहायता नहीं मिल रही है । इन छोटे किसानों को नगदी फसलों की ओर आकर्षित करना आवश्यक है । ये किसान यदि इस ओर अग्रसर होते हैं तो इनके लिए रोजगार का उत्तम साधन घर-खेत पर ही सरलता से प्राप्त होगा । इसके लिए हालांकि बड़े कारक ज़िम्मेवार रहते हैं क्योंकि इसमें बीज, सिंचाई, विपणन यानी मार्केटिंग आदि तमाम घटक जुड़ें हैं । जब तक मक्का, जौ, गेंहू और बाजरा तक हम सीमित रहेंगे, तब तक कृषि व्यवसाय लाभ की पटरी पर किसानों की रेलगाड़ी नहीं दौड़ा सकता है । अदरक, लहसुन, प्याज, तिलहन, मूंगफली, सरसों और देश के कई हिस्सों में चाय, रबड़ आदि की खेती भी किसानों की आय को कई गुणा बढ़ा सकती है । नगदी फसलों की मांग भी इस देश की मार्केट में बहुत हैं और कीमतों में भी धीरे-धीरे लागत के अनुसार प्रदान करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं किंतु इसके लिए मार्केट तक पहुंचना और बिचौलियों से किसान की मेहनत को बचाना अभी भी चुनौती है । यदि इस पर सार्थक प्रयास तीव्र गति से नहीं हो पाता है तो फिर एक लंबा समय लगेगा और किसान सामान्य फसलों से नगदी की ओर जाने के बावजूद समस्या में घिरे रहेंगे।

नगदी फसलों के लिए सब्सिडी पर उन्नत बीज की उपलब्धता भी एक चुनौती होगी जिसे सरकार को कृषि विकास समितियों/किसान उत्पादक संगठनों के साथ मिलकर पूरा करने के प्रयास करने होगे।
3.5 फूड सब्सिडी/खाद्य अनुदान
देश के ग़रीब लोगों को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए फूड सब्सिडी दी जाती है । यह देश के उन लोगो को प्रदान की जाती है जिनकी आमदनी बेहद कम हैं और ग़रीबी रेखा से नीचे रहते हैं । ऐसे परिवारों को ज़रुरी खाद्यान्न यानी चावल, दाल, आटा, चीनी आदि पर सब्सिडी देकर सरकार आर्थिक सहायता करती है । इसके लिए सरकार ने विगत बजट में जो प्रावधान किया था उसमें कटौती करने का फैसला लिया । इससे इस अनुदान योजना पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के आसार तो रहते ही है लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कोरोना के कारण खाद्यान्न पर सरकार ने खुलकर बजट दिया ।

वर्ष 2022-23 के लिए खाद्य सब्सिडी के लिए बजट अनुमान 2,06,831 करोड़ रुपये लगाया गया था जबकि वित्त वर्ष 2021-22 के लिए संशोधित अनुमान 2,86,469 करोड़ रुपये था । इसमें 80 हज़ार करोड़ की कटौती हुई है ।
3.6 कृषि में मूलभूत सुविधाओं का अभाव
कृषि के लिए केवल उन्नत बीज, उपकरण आदि की ही आवश्यकता नहीं होती है । कृषि के लिए बिजली-पानी एवं संपर्क सड़क की व्यवस्था भी उतनी ही ज़रुरी है जितनी अन्य सुविधाएं होती है। खेतों में ट्यूबवेल को चलाने और अन्य विद्युतीय उपकरणों के संचालन हेतु बिजली की व्यवस्था खेतों तक होना आवश्यक है । यह मैदानी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर खेती कर रहे किसानों के लिए तो बहुत जगह उपलब्ध है किंतु यह पहाड़ी क्षेत्रों में न के बराबर ही है ।

दूसरी एक बड़ी समस्या यह है कि खेतों को आज भी मुख्य संपर्क सड़क से नहीं जोड़ा जा सका है । इसमें जब तक शत प्रतिशत सफलता प्राप्त नहीं होती तब तक किसानों की फसलों को मार्केट तक ले जाने में दिक्कतें तो रहेंगी ही । खेतों तक कृषि उपकरणों को पहुंचाने अथवा बीज आदि की आपूर्ति करने के लिए भी यदि संपर्क सड़क नहीं है तो मज़दूरी पर ही यह कार्य करवाने के लिए किसान बाध्य है । इससे किसान की फसल की लागत बढ़ती है और र्स्माट कृषि के लिए भी इसे बाधा के रुप में ही देखा जाना चाहिए। तैयार फसलों के लिए वाहन यदि खेत से दूर है तो किसान का एक कमाई का हिस्सा तो मज़दूरी में ही समाप्त हो जाता है । यह दीग़र बात है कि इन सभी समस्याओं के चलते कृषि उत्पादों पर आधारित बाज़ार प्रभावित होता है जिसका किसानों की आर्थिकी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।
3.7. जटिल किसान ऋण व्यवस्था
किसानों को सरकार विभिन्न प्रकार ऋणादि प्रदान कर राहत की बात तो करती है किंतु उस राहत के बावजूद किसान आत्महत्या क्यों करता है, यह उसके लिए यक्ष प्रश्न है । ग़रीब किसान इस जाल में उलझ कर फिर बिचौलियो के हाथों अपनी फसलों को बेहद कम दामों पर बेचने को मज़बूर हो जाता है । यदि ऋण व्यवस्था सरल होती तो किसान आसानी से अपनी खेती में लाभांश के बाद उस ऋण के चक्रव्यूह से बाहर आ सकता है और यदि नुकसान हो तो भी कर्ज़ा उसे इतना जटिल व्यवस्था का भाग न बनाएं कि वो आत्महत्या तक करने के लिए क़दम उठाने की सोचे । यानी अरबों के ऋण वितरण के बावजूद प्रश्न है कि देश का आम किसान क्यो चिंतित और परेशान है ? किसानों को मिलने वाले ऋण क्या लाभार्थी किसानों तक पहुंच भी पाते हैं ? लघु एवं सीमांत किसानों पर बृहद् किसानों का प्रभाव इतना है कि सरकार के ये लाभ उन तक सरलता से या तो पहुंच ही नहीं पा रहे अथवा पहुंच भी रहे हैं तो आधे-अधूरे ।

बड़े किसान जो खेतों में काम तक नहीं कर रहे, वो सरकार के अनुदान पर मिलने वाले इन कृषि लोन पर कब्ज़ा जमाकर बैठ जाते हैं जबकि लघु एवं सीमांत किसान कम ऋण लेने पर भी फंसता चला जाता है । देखने में आया है कि अच्छी-खासी सरकारी नौकरी करने वाले लोग जो अपने खेतों को बंज़र बना चुके हैं, उनके नाम पर भी बैंकों में कृषि लोन चल रहे हैं । ये लोन 4 प्रतिशत के बेहद कम ब्याज़ पर मिल जाते हैं और इसका दुरुपयोग भी उसी हिसाब से हो रहा है । किसानों के इस लोन के बोझ से निश्चिंतता के लिए अभी कोई कारगर उपाय व्यवस्था की ओर से सामने नहीं आ पाया है।
नाबार्ड के हालिया अध्ययन के मुताबिक भारत में 10.07 करोड़ किसानों में से 52.5 प्रतिशत क़र्ज़ में दबे हुए हैं। |
3.8. कृषि उत्पादों की गुणवत्ता निर्यात में बाधा
भारत में अभी कृषि उस स्तर तक नहीं पहुच पाई है कि हम अपने उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्यात कर सकें यानी कुछ उत्पादों मे तो हम गुणवत्ता को बनाए रखने में सफल हो रहे हैं किंतु अधिकतर उत्पाद अपनी गुणवत्ता में अभाव के कारण मार्केट में उचित स्थान नहीं प्राप्त कर पाए हैं। अदरक, मक्की, गेंहु, कपास, आम, सेब, फलो के विभिन्न प्रकार और दालों तक में हमें गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है । उन्नत बीज के साथ ही खेतों तक उचित प्रबन्धन के अभाव ने इसे जटिल बनाकर रखा है । लघु एवं सीमांत किसान तो अभी फसलों की उत्पादकता को बढ़ाने तक सीमित हैं । फसल की गुणवत्ता क्या हो, इस पर अभी उन्होंने गंभीरता से प्रयास किए नहीं है । सरकार के प्रयास भी उन किसानों तक पहुंचे ही नहीं है और बीज भण्डारण केन्द्रों पर वही पुराना और साधारण बीज ही उपलब्ध करवाया जा रहा है । वो बीज भी शत प्रतिशत किसानों तक नहीं पहुंचता है और कुछ किसान उसे प्राप्त कर फिर शेष किसानों के लिए अनुपलब्ध का बोर्ड टंग जाता है । ऐसे में ये किसान अपनी पिछली फसल का ही कुछ बीज अगले वर्ष के लिए बचाकर रखते हैं और बार-बार उसकी ही बीजाई करते रहते हैं । ऐसे में फसलों की गुणवत्ता एवं उत्पादकता किस प्रकार सुनिश्चित होगी ?

प्रतिवर्ष कृषि उपज के नए एवं गुणवत्ता आधारित बीज एवं खादें उपलब्ध होने पर ही फसलों की मांग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाई जा सकती है और इसके निर्यात को भी गति प्रदान की जा सकती है । इसके लिए सुनियोजत तरीकों एवं तकनीकों के साथ ही सार्थक पहल करने की आवश्यकता थी जो अभी संभव ही नहीं हो पाई है ।
3.9 जैविक खेती की सुस्त रफ्तार
भारत में रासायनिक खादों के प्रयोग के कारण अधिकतर खेती का भाग अनुपजाऊ होता चला गया और आज स्थिति ये है कि कृषि को गुणवत्ता एवं उपजाऊ शक्ति संपन्न करना बहुत बड़ी चुनौती बन गया है । सरकार जैविक खेती को बढ़ाने के लिए दिन-रात प्रयास जारी रखे हुए हैं किंतु उनका सार्थक परिणाम अभी नहीं आ पा रहा है । इसके प्रति देश में अभी उतना उत्साह किसानों में भी नहीं देखा जा रहा है । इसके कई कारण है जिन पर सरकार को सोचने की आवश्यकता है । किसान कम कृषि क्षेत्र में अधिक उत्पादकता चाहता है, बेशक गुणवत्ता प्रभावित होती रहे । बेराजगारी एक बड़ा कारण है और इसी के चलते किसान खेती में उसी व्यवस्था को उचित मान कर चल रहा है जिस व्यवस्था में उसे अधिक पैदावार मिले और आर्थिक रुप से भी वो कम समय में सुरक्षित घेरे में आ जाए । जैविक खेती में भी हालांकि ये सभी कुछ संभव है किंतु योजनाओं को चलाने के बाद धरातल पर उसके क्रियान्वयन में व्यवस्था हांफ जाती है । न तो पूर्ण जागरुकता ही हो पाई है किसान की और न ही जैविक खेती की तकनीक पर मंथन एवं क्रियान्वयन संभव हो पाया है । ऐसे में जैविक खेती अभी टॉयट्रेन की रफ्तार से धीमे-धीमे आगे बढ़ रही है । इस रफ्तार से न तो कृषि उपज में गुणवत्ता को हासिल किया जा सकेगा और न ही उत्पादकता को बढ़ाने में किसान सफल हो पाएंगे।

भारत में इस समय 43 लाख 39 हज़ार से अधिक हेक्टेयर भूमि जैविक खेती के लिए पंजीकृत है । यह भी दीगर है कि अभी लगभग 35 लाख टन जैविक उत्पादों का उत्पादन हो पा रहा है । मध्य प्रदेश में जैविक खेती के लिए सबसे अधिक क्षेत्र पंजीकृत है और उसके बाद कुछ चुनिंदा राज्यों में हिमाचल प्रदेश का भी नंबर आता है । जिस खेत को रासायनिक खादों से उजाड़ बना दिया गया हो उसे फिर से पूर्ण जैविक बनाने में कम से कम 3 वर्ष का समय लगता है यानी प्रक्रिया धीमी तो है किंतु एक बारगी जैविक खेत बन जाने के लाभ किसानों को समझने पड़ेंगे जो कि अभी हो नहीं रहा है क्योंकि इससे उनकी उत्पादकता प्रभावित होती है और वो जैविक प्रक्रिया को मध्य में ही छोड़कर फिर से खादों का उपयोग करने लगते हैं। भारत में वृहद् कृषि क्षेत्र में जैविक की संभावनाएं बनी हुई है और पूरी दुनिया में यह भी आंकड़ा सुखद है कि सबसे अधिक जैविक किसान भारत में ही है, फिर भी व्यवहारिकता में हम जैविक खेती को दिशा देने में पीछे हैं। देश मे कितने किसान है जिनको सरकार की परंपरागत कृषि विकास योजना की जानकारी है ? शायद गिने-चुने ही किसान जानते होंगे। जानकारी ही किसानों तक नहीं पहुंच पाती है ।
जैविक खेती इस देश में सरल और आधुनिक तकनीक के साथ किसानों की मददगार बन सकती है लेक़िन इसके लिए सही तकनीक एवं जानकारी देश के किसानों तक प्रदान करना चुनौती होगी । जैविक खेती मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए सहयोगी भी है और लाभकारी भी ।
4. ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ योजना किसानों तक नहीं पहुंची

भारत सरकार की कुछ योजनाओं पर किसानों को शर्तिया लाभ मिल सकता है यदि वो लघु किसानों की पहुंच तक भी हो। कृषि सिंचाई योजना के एक घटक पर ड्रॉप मोर क्रॉप से सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था से दूरस्थ एवं जटिल परिस्थितियों में भी कार्य कर रहे किसानों को लाभ मिल सकता है । इस तकनीक से जल की कमी वाले क्षेत्रों में भी किसान अपनी कृषि की उत्पादकता को बढ़ाने में कामयाब हो सकते हैं । यह योजना गांव में अधिकतर किसानों के पास पहुंची ही नहीं है और इस कारण इसके फायदों से भी वंचित है । ड्रिप और स्प्रिंकल्र से पानी की कम मात्रा में उत्पादकता को बढ़ाने का यह बेहद सरल उपाय है लेक़िन योजना क्या है, कहां से किसान इसका लाभ लें, किस प्रकार इसके लिए आवेदन करें, आवेदन के साथ दस्तावेज़ी प्रक्रिया क्या है, किस प्रकार इस को खेतों में लगाना है आदि सभी प्रश्न लघु एवं सीमांत किसानों के लिए सामने खड़ें हैं । बड़े किसान अपने खेतों में हालांकि इसका भरपूर लाभ उठा रहे हैं । इस योजना को पहाड़ी क्षेत्रों में अभी किसानों की एक बड़ी संख्या द्वारा अपनाया जाना शेष है ।
योजनाबद्ध खेती का अभाव
देश में बहुत से ऐसे कृषि क्षेत्र हैं जहां कुछ हद तक योजनाबद्ध तरीके से खेती की जा रही है लेक़िन अधिकतर क्षेत्रों में खेती को पारंपरिक तौर-तरीकों से किया जा रहा है । सुनियोजित एवं तकनीकी सोच से इतर पुरानी परिपाटी पर खेती से अधिक लाभ किसान को नहीं हो पा रहा है । किसान जलवायु पर आधारित खेती के साथ ही कब किस खेत में क्या बीजना है और किस प्रकार बीजना है, इसका व्यवहारिक कृषि ज्ञान न होने के कारण खेती पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है । एक खेत में फसल का उत्पादन लेने के बाद फिर उसमें बीज का रोपण होता है । उसके बाद प्रतीक्षा होती है अगली फसल की जिसकी बीजाई होनी शेष होती है । खेतों में मृदा जांच के अभाव से फसलों की एक समान खेती किसान को अधिक लाभ नहीं देती है । इसके लिए योजना का अभाव है और यह योजना किसानों को जब तक नहीं मिलती, वो फसल बीजाई एवं उत्पादन के गणित को नहीं समझ पाएंगे । इसके लिए एक योजनाबद्ध खेती का फार्मुला अपनाने की आवश्यकता है ।

फसल की वितरण व्यवस्था अव्यवस्थित एवं मंहगी
देश में खेती की व्यवस्था मैदानी एवं पहाड़ी क्षेत्रों में विभाजित हैं । इस विभाजन का कृषि उत्पादन पर भी बहुत बड़ा प्रभाव देखा जाता रहा है । यहां ज़िक्र फसलों के लिए परिवहन व्यवस्था का हो रहा है जो कि कृषि अर्थव्यवस्था में बहुत बड़े किरदार में रहता है । परिवहन व्यवस्था में कमी पूरे कृषि व्यवसाय को प्रभावित करती है । विशेषकर पहाड़ी राज्यों मे कृषि के प्रति निराशाजनक रवैया कहीं न कहीं परिवहन व्यवस्था से जुड़ा हुआ है । पहाड़ी क्षेत्रों में किसानों के खेत संपर्क सड़क से काफी दूर होते हैं और इस कारण खेतों की मुरम्मत से लेकर, बीजाई और उपकरणों को वहां पहुंचाने में दिक्कत आती है। फसल तैयार हो जाने के बाद उसे सड़क तक लाने में भी बहुत मेहनत एवं मज़दूरी लग जाती है । इससे फसल की लागत भी कई बार किसान को वापस नहीं मिल पाती है । यही निराशा किसानों को कृषि के प्रति निरुत्साहित करती है । यहीं से उत्पादन क्षमता प्रभावित होकर देश की कृषि अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती है । सड़क का खेतों से जुड़ना सबसे बड़ा मुद्दा है और न केवल मुद्दा बल्कि फसलों से किसानों को लाभ की पटरी पर आना है तो यह अति आवश्यक भी है । किसानों को खेत से फसल को पहले अपने घर तक पहुंचाना होता है । उसके बाद उसे संपर्क सड़क तक मज़दूरी देकर पहुंचाया जाता है । फिर वहां से स्थानीय आढ़तियों के लोग पिकअप या छोटे ट्रक वाहन से सभी किसानों की फसलों को गाड़ी में भरकर ले जाते हैं । किसानों को दो दिन बाद उनकी फसल की मेहनत की अदायगी की जाती है । किसानों को ये भी पता नहीं होता कि कौन सी मार्केट में उनकी फसल को बेचा गया है और उसकी क्या लागत उन्हें मिली है । जो भी वाहन के चालक हाथ में थमा देते हैं, उसे ही स्वीकार करने की किसान की मज़बूरी है । बेहद कम लागत पर किसान की मेहनत बिचौलियों के हाथों नीलाम हो जाती है । वाहन चालक किसानों की सब्जियों को ले जाकर आगे आढ़ती/बिचौलियों को बेच देते हैं । बिचौलिए उसी फसल को अपने हिसाब से मार्केट की सेटिंग के हिसाब से बेचते हैं । अंत में सबसे कम पैसा यदि किसी को मिलता है तो वो है उस फसल को उगाने वाला किसान । किसान की मज़बूरी ये है कि उसके पास कोई पंजीकृत वाहन व्यवस्था नहीं है जो उसकी फसल को घर से तोल कर वहीं कीमत प्रदान कर उसकी फसल को फिर मार्केट तक ले जाए । संपर्क सड़कों को खेत तक पहुंचाने की योजना पर अभी तक पंचायतों या ज़िला प्रशासन से लेकर सरकार तक ने सटीक क़दम नहीं उठाया है । अब समस्या यह है कि न तो खेत तक सड़क पहुंची और न ही फसल वितरण व्यवस्था किसानों के अनुकूल बनी जिससे परिवहन आदि को दुरुस्त कर किसान पारदर्शी तरीके से अपनी फसल का उचित दाम अपने खेत में ही प्राप्त कर पाएं ।
समस्याओं का कृषि समाधान

यहां समस्याओं की और जितनी भी बात की जाए वो कम ही रहेगी । आज़ादी के बाद जिस तीव्र गति से कृषि क्षेत्र को आगे ले जाने की मुहिम चली, उसमें बहुत कुछ आवश्यक क़दम पीछे छूट गए और वो समस्याओं के रुप में विकराल होते गए । इस पर राष्ट्रीय एवं वैश्विक मंथन तो होता है किंतु समाधान की रफ्तार और दूरगामी सोच का प्रभाव बेहद कम दिखता है । इसलिए विश्व के बहुत से छोटे देश भी हमसे बहुत सी फसलों के उत्पादन में बहुत आगे निकल गए हैं । इसके लिए वृहद् और व्यवहारिक समाधान की आवश्यकता है जो आज और अब भी न हुआ तो देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ देश के अन्नदाता को भी बहुत परेशानी में डाल देगा । इसका व्यापक समाधान हमारे पास है । कृषि समाधान……..समस्याओं पर मंथन से लेकर खेत में हल जोतते किसान के हाथों को थामने तक, हम समस्या को समझकर उसके निदान के प्रति कृतसंकल्पित हैं ।
कृषि समाधान क्या है
कृषि समाधान किसानों से सबद्ध एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो देश के किसानों के लिए उनकी समस्याओं के समुचित एवं व्यवहारिक समाधान के लिए प्रयास कर रहा है । किसानों की फसलों के उत्पादन, प्रबंधन, जानकारी, विपणन की नई तकनीक, तकनीक आधारित खेती एवं किसानों की आय को सशक्त रोजगार में तबदील कर उनकी अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने में कृषि समाधान सेवाएं दे रहा है । इसे पूर्णतः ऑनलाइन प्रारुप के अनुसार पारदर्शी तरीके से किसानों के लिए उनकी प्रत्येक मांग, समस्या, आवश्यकता एवं आधुनिक कृषि आधारित प्रक्रिया को सामने रखा गया है । किसान अपनी फसलों के लिए कब बीजाई करें, कौन सी फसलों की बीजाई किस समय और जलवायु में करें, फसलों के लिए खाद, जैविक हल एवं विपणन यानी मार्केट तक की सुविधा के लिए एक बड़ा एवं कारगर प्लेटफार्म उपलब्ध है जिसके माध्यम से किसान को फसल उत्पादन के बाद निश्चिंत होकर उनकी मेहनत का फल उनके घर पर ही प्राप्त हो जाए ।

आढ़त और बिचौलियो द्वारा वर्तमान कीमत निर्धारण व्यवस्था में परिवर्तन की आवश्यकता है । इसी चक्र को तोड़कर किसानों की मेहनत एवं फसलों के उत्पादन का सीधा लाभ किसानों को दिलवाने का प्रयास ही है कृषि समाधान। कृषि मित्र से लेकर फसलों का विवरण, खेतों से मृदा जांच, नई कृषि तकनीक, किसान उत्पादक संघ, सरकार की कृषि योजनाओं की जानकारी एवं उन योजनाओं से सामजस्य बिठाना, उत्पादों को सीधी उपभोक्ताओं तक ले जाने में मदद आदि ऐसी व्यवहारिक प्रक्रियाओं के माध्यम से देश में कृषि समाधान की ओर यह सार्थक एवं तीव्र पहल कही जा सकती है ।
1. उन्नत बीज एवं कृषि उपकरण
वर्तमान में उन्नत बीज प्रबंधन किसानों के लिए स्थाई हल नहीं बन पा रहा है । बीज गुणवत्ता सबसे ज़रुरी क़दम है जो किसानों की आर्थिकी को सीधा प्रभावित करती है । अभी जो बीज किसान प्राप्त कर रहे हैं वो किसी न किसी निजी कंपनी के द्वारा तैयार कर किसानों को प्राप्त हो रहे हैं और उनकी कीमत बहुत अधिक होने के कारण किसान उसकी कम मात्रा ही ले पाता है और फिर लागत के अनुसार उत्पादन नहीं ले पाता है । कृषि समाधान इसका हल किसान विकास संघों द्वारा ही करवाने के लिए प्रयास कर रहा है । प्रगतिशील किसानों को यह ज़िम्मेवारी दी जाएगी ताकि वो अपने अनुभव के अनुसार इस प्रकार की उन्नत फसलों के बीज की नर्सरी तैयार करें । इसमें सरकार की ओर से तकनीकी टीम सहयोग करेगी । क्षेत्र विशिष्ट उन्नत बीज की नर्सरी से गुणवत्ता आधारित बीज ही किसानों को मिलेगा और इससे उत्पादन भी बढ़ेगा तथा फसल की गुणवत्ता में भी इजाफा होगा। किसान उत्पादक संघ ही इसे संचालित करेंगे तथा किसानों को कम लागत से तैयार बीज भी उपलब्ध करवाएंगे। इससे किसान मन मुताबिक बीज का क्रय कर सकता है और अधिक से अधिक खेती में पैदावार की ओर आगे अग्रसर हो पाएगा ।
दूसरी बड़ी बात ये है कि बीज की उपलब्धता किसानों तक आज भी आसान प्रक्रिया नहीं हैं । कृषि समाधान इसके लिए सार्थक प्रयासों के साथ बीज की उपलब्धता किसानों के घर पर ही करवाने के लिए कार्य कर रहा है । कृषि मित्र स्थानीय किसान उत्पादक संघों द्वारा स्थानीय स्तर पर ही बीज उत्पादक केन्द्रों/नर्सरी से किसानों को घर पर ही उपलब्ध करवाएंगे । इसके लिए सारी औपचारिकताओं को कृषि मित्र किसानों के साथ संपर्क कर स्वयं ही पूरी करेंगे । बीज की उपलब्धता के बाद उसकी बीजाई एवं खेती में अन्य उपयोग हेतु कृषि मित्र सहायक की भूमिका में रहेंगे ।
कृषि उपकरणों में भी अभी बहुत से प्रयास किए जाने शेष है । देश में वर्तमान स्थिति ये है कि अधिकतर कृषि उपकरण चीन से आयात हो रहे हैं हालांकि ये उपकरण बेहद आधुनिक तकनीक से लैस होते हैं किंतु इनकी गारंटी नहीं होती । ये उपकरण कब ख़राब हो जाएंगे इसके बारे में कहना मुश्क़िल हैं । इन बाहरी चायनीज़ उपकरणों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है । हमें कृषि उपकरणों को मेड इन इंडिया और स्टार्टअप योजनाओं आदि के माध्यम से देश में ही निर्मित किया जाना ज़रुरी है । कृषि समाधान इसमें देश की कृषि तकनीकी संस्थाओं के सहयोग से कृषि उपकरणों को तैयार करने के लिए प्रयास करेगा । ये तकनीकी संस्थाएं किसान उत्पादक संघों के साथ राज्यवार किसानों की ज़मीनों पर लघु इकाईयों की स्थापना की जाएगी तथा वहां पर कृषि उपकरणों का निर्माण एवं खाद का प्रबंधन किया जाएगा ।
इसके लिए कृषि समाधान इन किसान उत्पादक संघों को बैंकिंग दस्तावेजी प्रक्रिया में लोन आदि के लिए सहयोग करेगा तथा अन्य औपचारिकताओं को पूरा करने में भी सहायता करेगा । इसके लिए लघु इकाईयों की स्थापना में भी कृषि समाधान सहयोग करेगा। साथ ही, किसानों के लिए कृषि उपकरणों को कम कीमत पर उपलब्ध करवाने में सहायता करेगी । किसानों को मज़बूत एवं टिकाऊ कृषि उपकरणों की उपलब्धता को सुनिश्चित बनाया जाएगा । बाज़ार से भी बाहरी उपकरणों को खरीदने एवं किसानों को बैंक से लोन या सब्सिडी आदि पर कृषि समाधान सहायता करेगा । सरकार की कई योजनाओं में किसानों को भारी सब्सिडी के माध्यम से कृषि उपकरणों को उपलब्ध करवाया जाता है किंतु यह जानकारी सभी किसानों के पास नहीं है । यदि कहीं यह जानकारी है तो वहां दस्तावेज़ी प्रक्रिया की जटिलता में किसान हताश हैं । इसे जानकारी के अभियान के साथ किसानों को इसका लाभ दिलवाने में किसान उत्पादक संघों एवं संगठनों को कृषि समाधान सहयोग करेगा । ऑनलाइन प्रक्रिया के माध्यम से किसानों को पारदर्शी तरीके से समस्त योजनाओं का लाभ प्रदान किया जाना हालांकि एक चुनौती है किंतु कृषि समाधान इसे संभव बनाने की सफल योजना के साथ इसका प्रारुप तैयार कर किसानों के साथ सहयोग कर रहा है । किसानों को सिंचाई की पाईपों का वितरण पारदर्शी तरीके से किया जाएगा और जितनी भी पाईप की आवश्यकता होगी उतनी किसानों को दी जाएगी । इसके लिए कृषि मित्र सर्वे के आधार पर मांग लेंगे और किसानों तक पहुंचाने के लिए किसान उत्पादक संघ सहयोग करेंगे । पानी के सैंकड़ों प्राकृतिक स्रोत गांव में ही विद्यमान होते है जिनका सही उपयोग करना आवश्यक है । इसके लिए उन स्रोतों के उचित रखरखाव के बाद वहां से पाईपों के माध्यम से पानी को खेतों तक पहुंचाया जाएगा ।
2. मानसून पर निर्भरता हटाना और वर्षभर जल की उपलब्धता
देश की खेती का एक बड़ा भाग मानसून की निर्भरता पर टिका है । विशेषकर पहाड़ी राज्यों में यह स्थिति बेहद जटिल है । इसके लिए गांव के स्तर पर कृषि समाधान किसान विकास संघों/किसान उत्पादक संघों/ संगठनों एवं सरकार के सहयोग से किसानों के लिए वर्षभर जल की उपलब्धता को सुनिश्चित बनाने में प्रयास करेगा । गांव में सभी प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण के लिए व्यापक योजना का प्रारुप तैयार कर वहां जलसंचय कर उसे पाईपों के माध्यम से खेतों तक पहुचाने का कार्य किया जाएगा । इन जल स्रोतों के पास जलसंचय टैंक निर्मित किए जाएंगे जो कि मनरेगा अथवा कृषि व बागवानी विभाग से मिलने वाली आर्थिक सहायता के माध्यम से तैयार किए जाएंगे। ठीक उसी प्रकार गांव के लिए एक बड़ा जलसंचय टैंक व उसके बाद किसानों को जोनल व्यवस्था के आधार पर छोटे टैंक निर्माण के लिए प्रेरित किया जाएगा ताकि जल स्रोतों से पानी को वहां संचय कर रखा जा सके और समय आने पर फसलों की सिंचाई को संभव बनाया जा सके । जहां पानी की प्रचुरता नदी-नालों में है वहां गांव अथवा क्षेत्र के लिए बड़ी सिंचाई योजनाओं को बनाकर कम समय में तैयार किया जाएगा । विभाग की योजनाओं का लाभ किसानों को मिले इसके लिए कृषि समाधान किसानों को योजनाओं पर मिलने वाली सब्सिडी एवं लाभ को प्राप्त करने के लिए सहयोग करेगा ।
वर्षा जल संचय के लिए एक व्यापक योजना का प्रारुप बनाया जाएगा ताकि वर्षा जल को व्यर्थ न गंवाया जाए । प्रत्येक किसान की छत को एक भूमिगत जल संचय टैंक से जोड़ा जाएगा और उसी टैंक से विद्युत पंप के माध्यम से पानी को खेतों तक पहुंचाया जाएगा। वर्षाजल को हम व्यर्थ गवां देते हैं । यदि इसका सही उपयोग किया जाए तो इससे खेतों को सूखे की स्थिति में भी हराभरा रखा जा सकता है । इसके अलावा हम गांव में जलागम योजना के माध्यम से भी पानी का सदुपयोग कर सकते हैं । इसके तहत पहाड़ी पर ट्रैंची आदि खुदवाकर वर्षा जल से वो भर जाते हैं और वही जल रिसरिस कर भूमिगत जल /वॉटर टेबल को बढ़ा देता है । इससे खेतों मे प्राकृतिक तौर पर ही नमी वर्षभर बनी रहती है जो कि सीधा लाभ फसलों की अच्छी पैदावार पर डालती है । तालाब आदि में जल का संचय कर वहां फसलों के अलावा पेड़-पौधों एवं घास आदि को भी जीवनदान मिल जाता है । इसके लिए सरकार की जलागम योजना को प्रभावी एवं उपयुक्त क्षेत्रों में संचालन के लिए प्रयास करने होगे । किसान स्वयं अपनी ज़मीन पर इसके लिए प्रयास कर सकता है । यह कार्य कृषि मित्र के जागरुकता अभियान का हिस्सा होगी तथा किसान उत्पादक संघों से इसको प्रत्येक किसान तक पहुंचाने में सहयोग लिया जाएगा ।
गांव में एकल एवं संयुक्त दोनों की तरह के परिवार रहते हैं । घरों में बर्तन धोने, नहाने आदि से व्यर्थ हुआ जल उपयोग में लाया जा सकता है । इससे क्यारियों में कुछ खेती तो की ही जा सकती है । उसे भी एक टैंक स्टोर में तब्दील कर उपयोग में लाने के प्रयास कृषि समाधान करेगा उस गंदे जल को आंगन मे छोटी-छोटी क्यारियों में फूल-पौधों की सिंचाई मे उपयोग में लाया जाएगा ।
3. कृषि भूमि हस्तांतरण पर रोक
शहरीकरण ने लोगों को खेतों से दूर करने का प्रयास किया है जबकि शहर की आबादी अब गांव की ओर शहरीकरण का बीज लेकर आ रही है । इससे किसान अपनी कमज़ोर आर्थिक स्थिति को देखते हुए कृषि भूमि को बेच रहे हैं । जहां अच्छी खेती होती थी, वहां अब बाहरी लोग रेस्तरां, ढाबे और दुकानें खोल रहे हैं। कृषि समाधान कृषकों की कृषि भूमि हस्तांतरण को रोकने के लिए किसान उत्पादक संघों के माध्यम से इस पर रोक लगाएगा । किसानों को आर्थिक संबल प्रदान करना ही हमारा उद्देश्य है ताकि किसान आर्थिक तंगी के चलते अपनी उपजाऊ कृषि ज़मीन बेचने पर मज़बूर न हो । ज़मीन के लिए कृषि योग्य बनाने के प्रयास किसान संघों के माध्यम से किए जाएंगे और सरकारी अनुदान को प्राप्त करना उत्पादक संघों के लिए सरल बनाया जाएगा ।
4. दुरुस्त विपणन व्यवस्था
किसान विपरीत परिस्थतियों में भी अपने खेतों से सोना निकालते हैं और इसी से उनका और उनके परिवार का भविष्य भी सुरक्षित होता है । किसान के पास एक गंभीर समस्या ये है कि फसलों को मार्केट तक ले जाना आज भी इतना सरल नहीं है, साथ ही मार्केट में जाकर उनकी फसलों पर बिचौलिए/आढ़ती डाका डाल देते हैं । उनकी मेहनत का उनको दस से बीस प्रतिशत ही प्राप्त हो पाता है बाकि सारा लाभ बोलियां लगा रहे आढ़ती ले जाते हैं। बिचौलियों की उसमें कोई मेहनत नहीं फिर भी किसान के खून-पसीने पर खड़े-खड़े मोटा मुनाफा कमा लेते हैं । यहां यदि बिचौलिए किसानों से फसल खरीद भी रहे हैं तो इसमे फसल का वजन ईमानदार तरीके से हो । कीमत निर्धारण में भी मानक तय हों । कृषि समाधान इस पर अंकुश लगाने की बात कर रहा है । इसके लिए किसानों की फसलों को उनके खेतों से ही उठाकर एक किसान उत्पादक संघ से दूसरे किसान उत्पादक संघ तक बिना बिचौलियों के पहुंचाया जाएगा । यह मांग अनुसार होगा । जहां से भी मांग होगी, उसकी जानकारी ऑनलाईन प्रविष्टि के माध्यम से कृषि मित्रों द्वारा उत्पादक संघ को दी जाएगी । वहां से सीधी फसलें उस क्षेत्र में भेजी जाएगी । इससे किसानों को उनकी फसलों के वाज़िब दाम उनके घर पर ही दे दिए जांएगे । साथ ही उनका माल सीधा दूसरे एफपीओ के माध्यम से लोगों तक पहुंच जाएगा । यदि मार्केट की समस्या से किसान को निजात मिलती है तो वो अपना पूरा ध्यान अधिक फसलों की पैदावार और उसकी गुणवत्ता की ओर दे सकते हैं । कृषि मित्र फसलों की पूरी जानकारी एफपीओ के माध्यम से पूर्ण जानकारी को अपडेट रखेगा और इसे ऑनलाइन रखा जाएगा । किसानों को बाज़ार की चिंता से मुक्त किया जाएगा । दरअसल, किसानों को अपनी फसल के सही दाम मिलने के लिए आज पूरे देष की सत्ता चिंतित तो हैं किंतु यह संभव नहीं बनाया जा सका है । ऐसा होता तो किसान निरुत्साहित न होता और गांव से शहर में रोजगार के लिए न भागता । इतना ही नहीं, आत्महत्याएं इस बात की साक्षी है कि कहीं न कहीं व्यवस्था किसानों के अनुकूल नहीं है और प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण किसान हताष है । कृषि समाधान इस ओर सार्थक पहल कर रहा है । किसानों को उनकी फसलों के उचित मुल्य निर्धारण के बाद मार्केट में उनके शोषण को रोकने के प्रति भी कृतसंकल्प है । फसलों के विपणन में परिवहन आदि भी अहम होती है । उसके लिए भी कृषि समाधान समुचित व्यवस्था के साथ फसलों को मार्केट प्रदान करेगा ।
5. ग्रामीण एवं शहरी विकास की गति को एक समान करना
शहरों में विकास की गति जिस गति से आगे बढ़ रही है, वो गति देश के गांव नहीं पकड़ पाए हैं । गांव में किसान अभी भी खेतों में फसलों को जंगली जानवरों से बचाने लिए जद्दोज़हद कर रहे हैं। स्मार्टसिटी परियोजनाओं ने शहरों की कायाकल्प कर दी है । शहरों को कंकरीट के जंगल में तब्दील करने के प्रयास हो रहे हैं । कृषि समाधान गांव की तरक्की को आगे रखते हुए इसे सरकार की प्राथमिकता में लाने की बात कर कर रहा है । गांव से किसान को शहरों में रोजगार के आकर्षण से मुक्त करना होगा । गांव में जब तक किसान अपने खेतों, फसलों और उससे सशक्त रोजगार की ओर नहीं बढ़ता, शहर किसान को खेती से दूर ले जाने के लिए आकर्षित करते रहेंगे। कृषि समाधान गांव के किसानों के लिए सशक्त रोजगार को उनकी खेती से ही जोड़कर गांव में ही देने के लिए योजनाबद्ध तरीके से कार्य कर रहा है । गांव में वहीं के संसाधनों का उपयोग कर कृषि भूमि को सिंचित करने के प्रयास करना अब समय की आवश्यकता है । भूमिगत जल में बढ़ौतरी करने के प्रयास जलागम जैसी योजनाओं से करने होंगे । शहरों के साथ-साथ गांव को भी एक समान दृष्टि से देखते हुए वहां किसानों के लिए बेहतरीन सुविधाओं को लाना होगा । किसानों को शहर मे दुकानों या लघु उद्योगो में दिहाड़ी लगाने से कहीं बेहतर है कि उनकी खेती को सहयोग किया जाए । जब तक कृषि स्थाई रोजगार की गारंटी नहीं बनता, किसान खेतों को बंज़र बनाकर शहरों की ओर पलायन करता रहेगा ।
6. स्मार्टसिटी से स्मार्टविलेज की ओर सार्थक क़दम
शहरों को स्मार्टसिटी परियोजना के अंतर्गत कंकरीट के जंगलों में बदल कर आधुनिक विकास की गति को तीव्रता दी जा रही है किंतु यहां ज़रुरत है स्मार्टविलेज की । देश की अधिकतर आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है । कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में गांव की अहमियत को समझा जा सकता है । ऐसे में स्मार्टसिटी के साथ-साथ स्मार्टविलेज का विषय अब प्राथमिकता बनना चाहिए । स्मार्टविलेज में किसानों की खेती में क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकता है । कृषि उपकरणों को आधुनिक करना, नई कृषि तकनीक, गुणवत्ता आधारित बीज, फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए बजट एवं उन्नत खेती की ओर स्मार्टविलेज बेहतरीन कार्य कर सकता है । कृषि समाधान किसानों के लिए एफपीओ के माध्यम से सरकारी तंत्र से सहयोग कर सोलर बाड़/फेंसिंग व्यवस्था की ओर आगे बढ़ाएगा । किसान अपने खेतों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए खेतों की फेंसिंग करेंगे तथा वो भी सोलर पैनल आधारित होगी । इससे किसानों को विद्युत के खर्चे से मुक्ति मिलेगी । इस सोलर विद्युत से बाड़ में लगी तारों में हल्का सा विद्युत करंट होगा जिससे जंगली जानवर खेत में नहीं घुस पाएंगे । खेतों में तलपान, सिंचाई और आधुनिक तकनीक को स्मार्टविलेज में न केवल आर्थिक आधार मिलेगा बल्कि किसान की कृषि को भी एक दिशा मिलेगी । गांव के प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और वहां की संस्कृति को बचाने के साथ ही स्मार्टविलेज परियोजना को गांव में लागु करना होगा । कृषि समाधान गांव को स्मार्टविलेज बनाने के लिए कार्ययोजना निर्माण एवं तकनीकी सहयोग करेगा ताकि किसानों के लिए व्यापक पैमाने पर उसका लाभ मिल सके । स्मार्ट विलेज में मशीनीकरण होना चाहिए । सारे कृषि कार्य मशीनों से हों ताकि कृषि कार्यों गति भी मिले और स्मार्ट तरीके से किया जा सके । 24 घंटे बिजली की व्यवस्था हो । स्मार्ट विलेज में कृषि के साथ ही अन्य व्यवसाय होने चाहिए जिनके लिए किसानों को प्रोत्साहित करते हुए सहयोग दिया जाएगा । इसमें मुर्गी पालन, मछली पालन आदि शामिल है । इससे किसान की आय में बढ़ौतरी होगी ।
7. ऊर्वरकों के उपयोग पर अंकुश
रासायनिक खादों के उपयोग से किसानों की खेती एक लंबे अरसे से प्रभावित हो रही है । ऊपजाउ भूमि भी इन रासायनिक खादों के प्रयोग से ख़राब हो रही है । अधिक पैदावार के लिए किसान रासायनिक खादों उपयोग करते हैं । इससे ज़मीन की गुणवत्ता तो ख़राब हो ही रही है साथ ही लोगों की सेहत के आंकड़ें भी चौंकाने वाले हैं । इसको कम करना ही होगा । कृषि समाधान किसानों के माध्यम से ही इस समस्या के समाधान के लिए सार्थक कोशिश कर रहा है । किसानों को पहले तो रासायनिक खादों के अंधाधुंध उपयोग के नुकसान के प्रति जागरुक करना पड़ेगा । उनको यह जानना बेहद आवश्यक है कि उनके खेतों की उपजाऊ मिट्टी धीरे-धीरे नष्ट होती जा रही है । इसके अलावा खेतों से उगने वाली फसलों को भी वह ज़हरीला करते है और हम कीमत चुका कर भी ज़हर खरीद रहे हैं । रासायनिक खादों के उपयोग को कम करने के लिए इसके विकल्प भी तैयार रखने होंगे । इसके लिए जैविक खेती की ओर ध्यान देने कीे आवश्यकता है । किसानों के लिए एफपीओ के माध्यम से ही गांव में क्लस्टर स्तर पर छोटी-छोटी जैविक खाद इकाईयों का स्थापन होगा । जैविक खाद की आपूर्ति मांग अनुसार किसान उत्पादक संघों तक कृषि मित्र पहुंचाएंगे । इस प्रकार कम लागत पर जैविक खाद आदि का वितरण किसानों तक होगा । प्रत्येक पंचायत स्तर पर जैविक खाद इकाईयों की स्थापना की जाएगी ताकि किसान अपने स्तर पर ही खाद तैयार कर उसका उपयोग करें और इसके लिए आत्मनिर्भर बन सके । रासायनिक खादों के कारण जो विदेषी मुद्रा के सामने आज रुपया धड़ाम से गिर रहा है वो भी एक चुनौती है । रासायनिक खादों का अधिकतर बाहरी देशों से आयात हो रहा है । इस पर अंकुश लगाने की ओर क़दम बढ़ाना होगा । इसके लिए हम अपने ही देश में गांव के स्तर पर किसान संघों के साथ मिलकर यही पर आवष्यक उर्वरकों को लघु इकाईयों में तैयार करें ।
8. मृदा जांच अब किसानों के लिए सरल हो
मिट्टी के पोषक तत्वों की यदि जानकारी नहीं होगी तो किसान अपनी फसलों के उत्पादन में आगे नहीं बढ़ सकता है । ग्रामीण स्तर पर अधिकतर गांवो में किसान इस बात से अनभिज्ञ हैं । कुछ प्रगतिशील किसान एक-दो बारगी तो मृदा जांच केन्द्र में जाकर अपने खेतों की मिट्टी जांच करवा लेते हैं किंतु अधिकतर किसान ऐसा नहीं कर पाते हैं । मृदा जांच केन्द्र एक तो खण्डस्तर पर होते हैं जो गांव से दूर होता है । किसान अपना समय नष्ट नहीं करना चाहते । इसलिए मौजूदा ढर्रे पर ही खेती करते रहते हैं। कृषि समाधान इस बात को सुनिष्चित बनाएगी कि किसान के खेतों की मिट्टी की जांच उसके खेत से मिट्टी का नमूना लेकर उसकी रिपोर्ट उसको घर पर ही मिले । मृदा जांच केन्द्र पंचायत स्तर पर होने आवश्यक है । यदि आरंभ में यह संभव न हो तो इसे दो पंचायतों के स्तर पर भी बनाया जा सकता है । उसके बाद एक कृषि मित्र जो हर पंचायत में होगा, किसानों के खेतों से मिट्टी के सैंपल लेकर मृदा जांच लैब ले जाएगा । उसकी रिपोर्ट आने के बाद उसे किसानों को दिया जाएगा और रिपोर्ट के आधार पर किसानों को मिट्टी के लिए क्या करना है, उसकी पूरी जानकारी प्रदान की जाएगी । किसान विकास खण्ड अथवा ज़िला स्तर पर स्थापित मृदा जांच केन्द्र/लैब के चक्कर काटने से बचता है । उसको यह सुविधा घरद्वार पर ही चाहिए, तभी किसान इसमे अपने शौक से आगे बढ़ेगा और अपने खेतों की मिट्अी की गुणवत्ता के लिए उत्सुक होकर कार्य भी करेगा । यह कार्य कृषि मित्र आसानी से करके किसान को घर पर ही उपलब्ध करवा देगा ।
9. मृदा पोषण उपायों के साथ आधुनिक खेती
यह विडंबना ही है कि किसान पहले तो अपनी मृदा जांच के प्रति न तो जागरुक है और न ही उत्साही । यदि ऐसा कुछ किसान जागरुकता के साथ जांच करवाते भी हैं तो उनको रिपोर्ट मिलने तक ही संतोष करना पड़ता है क्योंकि मृदा पोषण उपायों पर उनको जानकारी ही नहीं दी जाती है । कृषि समाधान इसमें तकनिकी सहयोग देगा। मिट्टी में जिन पोषक तत्वों की कमी है, उसे पूरा करने के लिए विषय विषेषज्ञों की टीम से सलाह करके किसानों को जानकारी प्रदान की जाएगी ।
किस खेत की मिट्टी में क्या गुण है, किन पोषक तत्वों की कमी है, ये सब किसान को रिपोर्ट में मिले ताकि फिर उसके समाधान की ओर बढ़ा जा सके । उसके बाद मिट्टी के लिए आवष्यक जैविक खाद एवं अन्य उत्पाद किसानों को उपलब्ध करवाएं जाऐगें । किसान उसी हिसाब से अपने खेत की मिट्टी को घर पर ही उपलब्ध सामग्री से उन्नत मृदायुक्त कर सकता है । इसके लिए किसान को न भटकना पड़े, इसको कृषि समाधान एफपीओ एवं कृषि मित्रों के माध्यम से सुनिष्चित करेगा । मिट्टी में कम मात्रा में पाए जाने वाले पोषक तत्वों को किसानों को उपलब्ध करवाकर उस मिट्टी को गुणवत्ता आधारित करने में किसान अपने उत्पादक संघों की मदद लेंगे । मात्र पोषक तत्व ही नहीं, खेती को आधुनिक तरीके से करने के लिए किसानों को अन्य समस्त उपायों पर भी जागरुक करना होगा ।
10. भण्डारण प्रबंधन
जैसा कि पहले भी कहा गया है कि देश में भण्डारण की स्थिति में कोई बड़ा बदलाव अभी तक नहीं आया है । यह मुद्दा सड़क से संसद तक उठता है किंतु परिणाम कुछ ज़्यादा संतोषजनक अभी तक नहीं देखे गए । दरअसल, देश में अनाज सक एक बड़ा हिस्सा तो भण्डारण की कमी के कारण नष्ट हो जाता है । 2005 और मार्च 2013 में 1.95 लाख टन अनाज भण्डारण के अभाव में नष्ट हो गया था । यही स्थितियां अभी भी देश में है । इसके लिए कृषि समाधान व्यापक पैमाने पर कृषक उत्पादक संघों के माध्यमों से अन्न भण्डारण केन्द्रों की स्थापना स्थानीय स्तर पर ही करेगा । अनाज खेतों से घर पर आते ही उसे स्टोर करने की योजना पर कार्य होगा । अनाज को आरंभ में ही मांग अनुसार संबन्धित उत्पादक संघों को प्रदान कर दिया जाएगा । इसकी एक तय समय सीमा होगी । कुछ अनाज एक वर्ष के लिए भण्डारण केन्द्रों में एक साथ ही रख लिया जाएगा और कुछ का भण्डारण एक माह के लिए किया जाएगा । कुछ प्रतिदिन के हिसाब से ही मांग अनुसार भेजे जाएंगे । भण्डारण केन्द्रों को पंचायत स्तर पर करने की योजना पर कार्य होगा। इसमें सबसे बड़ी बात ये रहेगी कि फसलों को तैयार होने के बाद घर से सीधा मांग अनुसार कृषि मित्र एफपीओ से एफपीओ के मध्य वितरण को सुनिश्चित बनाएंगे । इससे भण्डारण की प्रक्रिया का विकेन्द्रीकरण होगा और अन्न को एक स्थल पर ही जमा नहीं करना पड़ेगा । छोटे-छोटे भण्डारण स्थल सुरक्षित भी हैं और उपयोगी भी । इससे खुले में पानी से अन्न की बर्बादी को बचाया जा सकता है। खाद्य आपूर्ति विभागों को दुरुस्त किया जाएगा । उचित मुरम्मत के अलावा स्टोर को आकार में बड़ा किया जाएगा। इसके अलावा, जंगली जानवरों, चूहों आदि से भण्डारित अनाज को बचाना एक चुनौती रहेगा ।
11. जनसंख्या और स्मार्ट खेती
जनसंख्या के हिसाब से कृषि भूमि पर कार्य करने की आवश्यकता रहेगी। आज संयुक्त परिवार टूट कर एकल परिवारों में तब्दील होते जा रहे हैं। ऐसे में कृषि भूमि का वितरण भी एक से अनेक जगह होता जा रहा है । कृषि के लिए हालांकि इस प्रकार की स्थिति सही नहीं कही जा सकती है किंतु विभाजित लघु खेतों में खेती की अधिक पैदावार लेने के लिए स्मार्ट खेती को अपनाना होगा । एक खेत के छोटे टुकड़े से किस प्रकार अधिक से अधिक पैदावार हो, इस पर कृषि समाधान योजनाबद्ध तरीके से काम कर रहा है । कृषि जलवायु के अनुसार नहीं बल्कि आधुनिक तकनीक से करने के लिए प्रयास करने होंगे। स्मार्ट खेती में कम क्षेत्र में पैदावार अधिक ली जा सकती है ।
12. कृषि में निवेश बढ़ाना
देश में कृषि क्षेत्र में निवेश की संभावनाओं को तलाश कर उन्हें क्रियान्वित करने का समय है। कृषि में सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए निजी क्षेत्र से भी निवेश की आवश्यकता रहेगी । सरकार के स्तर पर विदेशों से भी भारत में कृषि क्षेत्र में विभिन्न स्तरों पर निवेष होना चाहिए ताकि कृषि को और अधिक उन्नत एवं अग्र्रिम पंक्ति में लाकर देश की अर्थव्यवस्था में बढ़ौतरी हो । ड्रिप सिंचाई को अब गांव-गांव में ले जाना होगा । मैदानी क्षेत्रों के बराबर ही इसे पहाड़ी क्षेत्रों में हर खेत तक ले जाने की आवश्यकता है । बजट अधिक होने के कारण अधिकतर किसान अभी इस ओर मुखर नहीं हो पा रहे हैं । इसमें सरकारी अनुदान की प्रतिशतता को अधिक करते हुए इसे न के बराबर लागत पर किसानों तक पहुंचाने की आवश्यकता है । इसके लिए पीपीपी मोड़ के अलावा बाहरी निवेश को स्वीकृति देते हुए बजट की व्यवस्था करनी होगी । कृषि समाधान इसमें आंकड़ों को एकत्रित कर मांग को सरकार के समक्ष रखने के बाद किसान संघों के माध्यम से हर खेत ड्रिप योजना पर काम कर रहा है । जल के अभाव में भविष्य की योजना अभी से तैयार करनी होगी । इसके लिए कृषि समाधान हर खेत ड्रिप योजना के माध्यम से पानी की बचत करने पर किसानों के साथ प्रतिबद्ध है और इस क्षेत्र में हरसंभव सहयोग के लिए तैयार है । आधुनिक कृषि उपकरणों के हर किसान तक न पहुंच पाने के कारण पारंपरिक कृषि उपकरण कृषि पैदावार की गति में अवरोधक हैं । वैश्विक स्तर पर भारत को यदि कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा करते हुए आगे बढ़ना है तो हर किसान तक आधुनिक कृषि उपकरण पहुंचाने और उपयोग करने की ओर सार्थक पहल करनी होगी । इसमें किसानों की ज़रुरत एवं परिवहन व्यवस्था में कृषि समाधान आईटी आधारित आंकड़ों से सरकार की मदद करने को तैयार है तथा हर किसान तक इन उपकरणों को आसानी से पहुंचान में भी सहयोग करेगा । उन्नत बीज और रासायनिक व जैविक खादों की मात्रा में भी वृद्धि करने की आवश्यकता है । इसमें अनुदान की प्रतिशतता को बढ़ाने के लिए भी अब गंभीर होना होगा । यह बिना बाहरी निवेश के संभव नहीं दिख रहा है । फसलों को हर मौसम में नुकसान होता है । गर्मी में सूखा और बरसात में बाढ़ आदि से फसलों के नष्ट होने पर देश की आर्थिकी डगमगा जाती है । इसके लिए निजी और विदेशी निवेश मददगार साबित होगा । कृषि संस्थाओं, संगठनों, बाहरी कृषि संगठनों एवं सरकारों का सीधा निवेश इसमें सहायक होगा । किसानों को बैंकिंग व्यवस्था से सस्ते लोन व ब्याज से जोड़ने पर भी इसे आसान बनाया जा सकता है । इसके लिए कृषि समाधान उनके लिए सहयोगी संस्था के रुप में सेवाएं देगी ।
13. फसल बीमा को दुरुस्त करना
कृषि के लिए केन्द्र सरकारें हों या राज्य सरकारें अपने स्तर पर विकासात्मक प्रयास जारी रखते हैं लेक़िन फसलों को अचानक होने वाले नुकसान से राहत के रुप में उनके पास आज भी सार्थक उपायों का अभाव है । फसलो को हर मौसम में मार झेलनी पड़ती है । बरसात में बाढ़ तो गर्मी में सूखे से नुकसान होता है । सर्दियों में पाला/फ्रॉस्ट से फसलें ख़राब हो जाती है । ऐसे में फसलों को होने वाले नुकसान से किसानों को राहत देने के लिए फसल बीमा बेहद आवश्यक है । यहां सरकार की महत्वकांक्षी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना कारगर साबित हो सकती है यदि सभी किसानों तक इसकी सही जानकारी एवं लाभ को पहुंचाने में हम कामयाब हो पाते हैं । इस फसल बीमा योजना में कुछ ख़ामियां भी हैं । इसमें बीमा के अंतर्गत विशेष क्षेत्र, फसलें और किसान ही लिए गए हैं जिससे यह सभी फसलों पर लागु नहीं होती है । इसके लिए कृषि समाधान सरकार किसानों और सरकार के मध्य एक पुल के रुप में कार्य करेगा ताकि किसानों की बात को सरकार तक उचित प्रकार से रखा जा सके । अधिकतम फसलों को इस बीमा योजना के अंतर्गत लेने की आवश्यकता है । साथ ही राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर वहां की फसल विशेष को बीमा दायरे में लेने के बाद अन्य फसलों को भी इसमें जोड़े । इससे किसान बेझिझक खेती करने के लिए आगे आएगा और एक सुनिश्चितता बनी रहेगी कि यदि फसलों में आपदा के कारण नुकसान भी होता है तो भी उसकी मेहनत का 100 प्रतिशत उसे बीमा के कारण वापिस मिल जाएगा। इसके अलावा कृषि समाधान किसानों की सूची एवं कृष्ट कृषि क्षेत्र का क्षेत्रफल व फसलों का पूर्ण विवरण उपलब्ध करवाएगा । किसानों को फसलों में हुए नुकसान पर समस्त दस्तावेज़ी औपचारिकताओं को पूरा करने में भी कृषि समाधान कृषि मित्रों के सहयोग से किसानों के घर पर ही पूरा करवाने के लिए सार्थक पहल करेगा। बीमा राशि को किसानों के खाते में पहुंचाने तक कृषि समाधान सहयोग करेगा । किन फसलों पर बीमा प्राथमिकता के आधार पर हो, इसका सर्वेक्षण करने के बाद सरकार को इसका पूर्ण विवरण दिया जाएगा । यह भी सुनिश्चित करना होगा कि फसलों की पैदावार प्रभावित होने यानी नुकसान हो जाने के बाद तय समय सीमा के भीतर किसान को उसकी फसल के लिए बीमा राहत प्रदान कर दी जाए ।
14. सामान्य फसलों से नगदी फसलों की ओर सार्थक पहल
देश में यदि किसान सामान्य फसलों की पैदावार पर ही निर्भर रहे तो किसानों का आर्थिक ढांचा तो मज़बूत हो ही नहीं सकता, देश भी अपनी विकास की रफ्तार नहीं पकड़ पाएगा । प्रत्येक किसान को सामान्य फसलों से नगदी फसलों की पैदावार की ओर अग्रसर होना होगा । ज़मीन कम हो या अधिक, नगदी फसलों से आमदनी में इज़ाफा होगा और आर्थिकी सुदृढ़ होगी ।इसके लिए कृषि समाधान कैश क्रॉप्स की जानकारी एवं खेती पर किसानों को विभिन्न माध्यमों से जागरुक करने के लिए प्रयास किए जाऐंगे । कृषि मित्र के माध्यम से ग्रामीण किसानों को संपूर्ण जानकारी घरद्वार पर ही उपलब्ध करवाने के लिए प्रयास होंगे। गेहूं, मक्का, बाजरा के अलावा अदरक, दालें, लहसुन, प्याज, मौसमी एवं बेमौसमी सब्जियां, फलों आदि पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है । इससे किसानों को अच्छे दाम मार्केट मे दिलवाने के लिए कृषि समाधान एफपीओ के माध्यम से सेवाएं लेगा । समस्त नगदी फसलों को बीमा योजना के दायरे में लाने की आवष्यकता है ताकि नुकसान होने की स्थिति में बीमा के माध्यम से किसानों को राहत प्रदान की जा सके । इससे किसानों का उत्साह नगदी फसलों की ओर भी बढ़ेगा । नगदी फसलों के कारण किसानों का शहर की ओर हो रहा पलायन भी रुकेगा क्योंकि यदि रोजगार का अच्छा अवसर उनके खेत से ही प्राप्त हो जाए तो शहर में रोजगार की तलाष में नहीं जाना पड़ेगा । नगदी फसलों की सही एवं उचित जानकारी किसानोें को सरकारी सहयोग से गांव में ही प्रदान करनी होगी । उसके बाद मृदा जांच के बाद कौन सी नगदी फसल किस खेत में होनी है, इस पर किसानों को जागरुक करना होगा। नगदी फसलों के बीज की उपलब्धता को भी सुनिश्चित करना होगा । कृषि समाधान इस प्रकार की सेवाओं के लिए किसानों के साथ एक व्यापक स्तर पर व्यापक योजना के साथ सेवा देने के लिए प्रयासरत है ।
15. फूड सब्सिडी यानी खाद्य अनुदान का सरलीकरण
फूड सब्सिडी यानी खाद्य अनुदान पर सरकार समय-समय पर प्रशंसनीय पहल करती रही है लेक़िन यह कहना भी ग़लत न होगा कि इसका समान वितरण एवं प्रबंधन हमेशा से ही संदेह के घेरे में रहता है । ऐसा इसलिए है क्योंकि खाद्य वितरण प्रणाली में अभी पारदर्शिता की ज़रुरत है । कृषि समाधान इसमें ग्राम सभाओं मंे ग़रीब लोगों की पहचान की प्रक्रिया को ही ग़लत मानता है । चयनित प्रतिनिधि अपने चहेतों को ग़रीबी रेखा से नीचे की श्रेणी सूची में डाल कर उनका भला करने में लगे रहते हैं और आम ग़रीब अपने हिस्से का लाभ लेने से वंचित रह जाता है । फूड सब्सिडी में सरकार की भूमिका भी सकारात्मक रहे तो आम ग़रीब तक इसका फायदा होगा । सरकार ने लगातार इसके बजट में कटौती की है । कोरोना के बाद हुई इस कटौती कारण राशन में कमी भी हुई और राशन पर मिलने वाला अनुदान भी कम हुआ । इसको लेकर सरकार को योजना के साथ अनुदान का सरलीकरण करना होगा तथा लाभार्थियों तक यह लाभ पहुंचाने के लिए प्रयास करने होंगे । इसमें कृषि समाधान ग्राम पंचायतों एवं ग्राम सभाओं के माध्यम से किसानों के साथ मिलकर लाभार्थियों तक खाद्य अनुदान में सेवाएं प्रदान कर सकता है ।
16. कृषि में मूलभूत सुविधाओं का समावेश
उन्नत बीज मिल जाना अथवा अन्य आवश्यक उपकरणों को किसानों तक पहुंचाने के बाद कृषि को गति नहीं दी जा सकती है । किसानों के खेतों को आज आधुनिक सुविधाओं से जोड़ना एक चुनौती है और अनिवार्य भी है । सबसे पहले तो किसानों के खेतों तक विद्युत आपूर्ति का होना आवश्यक है । इसके लिए किसानों को आपस में सामजस्य बिठाने के साथ ही अपने क्षेत्र का अनापत्ति प्रमाण पत्र देना होगा जिससे बिजली को आसानी से सभी किसानों के खेतों तक पहुंचाया जा सके । ट्यूबवेल आदि के संचालन एवं अन्य विद्युत उपकरणों के लिए बिजली की आवश्यकता रहती है । इसके अलावा अति महत्वपूर्ण कार्य संपर्क सड़कों से खेतों को जोड़ने का है तो मैदानी क्षेत्रों में तो फिर भी अच्छे स्तर पर कार्य किया जा चुका है किंतु पहाड़ी क्षेत्रों में अभी यह बिलकुल सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ रहा है, या यों कह लो कि इस पर अधिक कुछ किया नहीं जा रहा है । कृषि समाधान इस पर किसानों के साथ उनके संगठनों को साथ लेकर हर खेत तक संपर्क सड़क पहुंचाने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने तथा योजनाबद्ध तरीके से रोड़मैप तैयार कर सड़कों से जोड़ने के लिए कार्य करेगा । सरकार को भी विधायक निधि, पंचायत राज सस्थाओं, सांसद निधि, सरकारी योजानाओं में किसानों के खेतों को संपर्क सड़क से जोड़ने के लिए बजट का प्रावधान करना होगा । इन सड़कों के बनने से खेतों से फसलों को मार्केट तक ले जाने एवं भारी मज़दूरी देने से राहत मिलेगी । इतना ही नहीं, खेतों में कृषि उपकरणों एवं बीजों आदि को ले जाने में भी सुविधा मिल जाएगी । इससे किसानों का आर्थिक बाज़ार मज़बूत होगा, देश की आर्थिकी भी अनुकूल वातावरण में आगे बढ़ेगी । कृषि उपकरणों को भी देश में ही निर्मित कर और अधिक मज़बूती देने की आवश्यकता है और इसका ज़िक्र हम पहले भी कर चुकें हैं कि छोटी कृषि उपकरण निर्माण तकनीकी ईकाईयों का गठन किया जाएगा जिससे इस सुविधा को किसानों को गांव में प्रदान किया जा सके । सिंचाई से हर खेत को जोड़ने का प्रयास ही किसानों को एक मज़बूत आर्थिक तंत्र से जोड़ेगा ।
17. किसान ऋण व्यवस्था का सरलीकरण
किसानों के लिए ऋण व्यवस्था भारतीय कृषि के संबल की रीढ़ है । किसान बैंकों से ऋण लेकर अपनी खेती को दिशा देने के लिए प्रयास करता है किंतु हमारे देश में ऋण व्यवस्था का जटिल होना किसानों के लिए भी निरुत्साहित करने का विषय है । ऋण के इसी कूचक्र की की चक्की में किसान आत्महत्या तक करने को मज़बूर हो जाता है । ऋण व्यवस्था सरल नहीं है । इस कारण किसान बिचौलियों के हाथों बेहद कम दाम पर फसलों को बेचने को मज़बूर है और अंततः वो बड़े नुकसान में आ जाता है । लागत के भी पैसे उसे न मिल पाए तो वो बैंक का ऋण कहां से चुकाएगा ? इसके लिए ऋण व्यवस्था का सरलीकरण होना आवश्यक है, हालांकि किसान ऋण पर सरकार 7 प्रतिशत का ब्याज लगाता है और ऋण खाता यदि सही से संचालित हो रहा है तो उसे वार्षिक 4 प्रतिशत ही लिया जाता है । 3 प्रतिशत सरकार ही वहन करती है । यहां सरकार को सतर्क रहने की आवश्यकता है क्योंकि अधिकतर ऋण कम ब्याज के कारण लाभार्थी किसानों तक नहीं पहुंच पाता है । इसे बड़े व्यवसाय करने वाले अथवा नौकरीशुदा किसान कृष्ट अथवा अकृष्ट भूमि को बैंक के पास रखकर ऋण उठा लेते हैं और वास्तव में वो खेतों में इसका उपयोग करते ही नहीं । लघु एवं सीमांत किसानों की दशा को समझते हुए, इन्हें प्राथमिकता के आधार पर सुविधाओं से जोड़ना होगा। लाभार्थी किसान तो आसानी से ऋण ले ही नहीं पाता । प्रक्रिया को भी बैंकिंग साइड से सरल नहीं रखा गया है । पहले तो जमाबंदी लाओ, उस पर राजस्व विभाग के अधिकारियों से सत्यापन हो, फिर कृष्ट व अकृष्ट भूमि का विवरण, तहसील में फीस जमा करने जाना आदि कितनी अधिक औपचाकिताओं ने इस प्रक्रिया को जटिल बनाकर रखा है । इससे किसान हताष हो जाते है । कृषि समाधान कृषि मित्रों के माध्यम से इस प्रक्रिया को सरल करेगा । कृषि मित्र स्वयं दस्तावेजी प्रक्रिया को पूरा कर किसानों के ऋण को स्वीकृत करेगे । इससे किसान की परेशानी कम होगी और उसे आसानी से घर पर ही ऋण भी प्राप्त हो जाऐगा । इसके अलावा कृषि विकास समितियों का गठन कर किसान आपस में ही लोनिंग का भी प्रावधान कर अपनी आर्थिक स्थिति को मज़बूत कर सकते हैं।
18. उत्पाद निर्यात के लिए गुणवत्ता लाना
भारत कृषि प्रधान राष्ट्र तो है और कृषि अर्थव्यवस्था एक बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था के रुप में देश के विकास मे साझी है । अधिकतर किसान आज भी फसलों के उत्पाद को गुणवत्ता आधारित नहीं बना पाए हैं । सामान्य फसलों से हम निर्यात को बढ़ावा नहीं दे सकते हैं । उत्पादन अधिक हो जाने की स्थिति में भी उसका निर्यात नहीं हो पाता क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में उसकी मांग नहीं होती है । हमें गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना होगा । न केवल प्रोत्साहित बल्कि उनको इस स्तर तक लाने के लिए उन्नत बीज से लेकर कृषि उपकरणों को आधुनिक स्तर पर मुहैया करवाने की आवश्यकता है । उनको उन्नत किस्म का बीज उपलब्ध हो और उस बीज की उन्नत फसल लेने के लिए आवश्यक चीजें भी किसानों को प्राप्त होनी चाहिए । कृषि के तौर-तरीकों में भी परिवर्तन समय-समय पर करना आवश्यक है । हमें जैविक खेती की ओर तीव्रता से बढ़ना होगा । जैविक उत्पाद आज वैश्विक मांग पर खरे उतर रहे हैं । स्वास्थ्य को खेती से जोड़कर ही देखा जा रहा है यानी यह भी कहा जाए कि अन्न और स्वास्थ्य अब पर्यायवाची हैं । इसके लिए बीज की उन्नत किस्म का हर समय उपलब्ध होना ज़रुरी है । किसान आज भी गांव मे बीज की अनुपलब्धता के कारण पुराना बीज घर पर रख लेते हैं और अगले वर्ष भी उसी की बीजाई कर देते हैं । यह उन्नत खेती में अवरोधक है । बीज ही नहीं, खेती का उन्नत प्रबंधन फसलों की गुणवत्ता को बढ़ाएगा । इससे उत्पाद की अंतर्राष्ट्रीय मांग बढ़ जाएगी । यह कार्य कृषि समाधान मंें एक बेहतरीन कृषि मॉडल के आधार पर पूरा किया जा सकता है । जानकारी, उन्नत किस्म, आधुनिक उपकरण, स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा किसानों को सभी सुविधाओं को गांव-खेत तक पहुंचाने के लिए कृषि उत्पादक संघों को स्वतंत्र रुप से कृषि समाधान के माध्यम से स्वायत्त सेवाएं प्रदान करने का अवसर दिया जाएगा । किसानों की खेती को ऑनलाइन डाटा आधारित करके हर पल खेती की निगरानी करके हम गुणवता आधारित फसलों की अधिक उत्पादकता को ले सकते हैं ।
19. रासायनिक खादों से जैविक खेती की ओर सार्थक पहल
देश में अधिक पैदावार लेने के लिए आज तक सारा ध्यान रासायनिक खादों के अंधाधुंध प्रयोग पर ही रहा । इससे आरंभ में तो परिणाम फसलों की अच्छी पैदावार के रुप में सामने आते गए लेक़िन कुछ समय के बाद मिट्टी अपनी उपजाऊ शक्ति को नष्ट करती गई । रासायनिक खादों का प्रयोग केवल फसलों की पैदावार को बढ़ा सकता है बाकि गुणवत्ता को नष्ट कर देता है । इसके लिए देष में किसानों को खेती के लिए रासायनिक खादों के उपयोग को कम करना होगा । कृषि समाधान रासायनिक खादों से जैविक खेती की ओर एक वृहद् योजना के साथ आगे बढ़ रहा है । किसानों के पास अपने जैविक पिट होंगे और उसमें वो गोबर की खाद को जैविक खाद में स्वयं ही परिवर्तित करेंगे। केवल पशुओं के गोबर को ही नहीं, फूललकड़ी, पत्तों आदि को भी जैविक खाद में बदला जाएगा । जैविक पिट बनाने का प्रशिक्षण संबन्धित विभाग के सहयोग से कृषि समाधान करेगा । इसमें किसानों के उत्पादक संघ और उनसे जुड़े किसानों को यह प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। बाद में यही किसान गांव-गांव में किसानों को इसकी जानकारी प्रदान करेंगे । किसानों को यह भी जागरुक किया जाएगा कि किस प्रकार रासायनिक खादों से कहीं अधिक लाभप्रद जैविक खाद होती है । जैविक खाद से उत्पादों की पैदावार भी अधिक होती है और गुणवत्ता के सारे मानकों पर भी वो वैश्विक पहचान रखती है । इसके बनाने और उपयोग के प्रति किसानों को कृषि समाधान जागरुक करेगा । एक बारगी जो रासायनिक खादों से खेत अनुपजाऊ हो चुका है, उसे पुनः उपजाऊ बनाने में लगभग 3 वर्ष का समय लगता है किंतु एक बार जैविक खेत बन जाने के बाद वो अधिक पैदावार करने वाला एवं गुणवत्ता आधारित हो जाता है। सरकार की जैविक पिट बनाने और खाद तैयार करने के लिए मिलने वाले सरकारी अनुदान का लाभ भी कृषि मित्रों के माध्यम से किसानों को घर पर ही दिया जाएगा । इससे किसान आसानी से कम दामों पर बिना आर्थिक चिंता के अपने जैविक पिट तैयार कर खाद बना सकते हैं और अधिक मात्रा में खाद तैयार करने पर उसे बेच भी सकते हैं । इसका सबसे बड़ा प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ेगा और स्वस्थता के साथ ही जीवन भी है । पर्यावरण के लिए भी जैविक खेती अनुकूल एवं मित्रवत होती है । सरकार की योजनाओं को एवं आधुनिक तकनीक एवं जैविक उपकरणों को किसानों तक पहुंचाने में कृषि समाधान एक महत्वर्पूण भूमिका निभाएगी । जैविक उत्पादों की आज अंतर्राष्ट्रीय मांग इतनी है कि इसको पूरा करना अभी संभव ही नहीं हो पा रहा है । इसको ध्यान में रखते हुए ही योजना के साथ आगे बढ़ना होगा ।
20. पर ड्रॉप मोर क्रॉप योजना प्रत्येक किसान तक पहुंचाना
किसानों को सिंचाई की व्यवस्था देश में एक बड़ी चुनौती है । हर खेत तक कूहल या पाईप से पानी की व्यवस्था संभव बनाना एक असंभव सा कार्य है । देश में भौगोलिक स्थिति पर यदि नज़र डाले तो मैदानी भागों के साथ-साथ पहाड़ी क्षेत्रों में हर खेत तक प्रचुर मात्रा में पानी की व्यवस्था नहीं की जा सकती है । इसके लिए ड्रॉप सिंचाई कारगर साबित हो रही है । इसमें खेतों में यदि ड्रॉप करके सिंचाई की जाए तो पानी की बेहद कम मात्रा ही उपयोग में आती है और पानी की बचत के साथ-साथ गहरी एवं नमी वाली सिंचाई से फसलों को कई गुणा लाभ मिलता है । यही लाभ किसानों का लाभ भी होता है । नमी रहेगी तो फसलों को पानी की वांछित मात्रा मिलती रहेगी । कूहल या ट्यूबवेल से सिचाई करते समय एक साथ पानी की अधिक मात्रा खेतों में फसलों को नुकसान भी पहुंचाती है । पर ड्रॉप मोर क्रॉप योजना प्रभावी साबित हो सकती है लेकिन अधिकतर किसान इसकी जानकारी से वंचित है । कृषि समाधान इसके लिए गांव के किसानों को कृषि उत्पादक संघों एवं कृषि मित्रों के माध्यम से जागरुक करेगा । इस योजना के लाभार्थी किसानों को कैसे लाभ मिल सकता है इसकी भी जागरुकता दी जाएगी । योजना को किसानों तक पंहुंचाने के लिए कृषि समाधान व्यापक रुप से दश भर मे किसानों को इससे जोड़ेगा । ड्रिप और स्प्रिंकलर से खेतों से अधिक पैदावार शर्तिया रुप से प्राप्त की जा सकती है । साथ ही इस सुविधा से किसानों का बड़ा कीमती समय बच जाता है क्योंकि खेतों में खड़े रह कर सिंचाई से मुक्ति मिल जाती है । स्प्रिंकल्र से ड्रिप होने से पानी अपने आप बूंद-बूंद फसलों की सिंचाई करता रहता है । इस योजना से कृषि समाधान उन लघु एवं सीमांत किसानों को प्राथमिकता के आधार पर जोड़ने का प्रयास करेगा जिन तक अभी पूरी जानकारी इसकी है ही नहीं । उनको इसके लाभ दिलवाने के लिए गांव में सेवाएं प्रदान की जाएगी ।
21. योजनाबद्ध खेती को प्राथमिकता
कृषि समाधान योजनाबद्ध खेती की वकालत भी करता है और इसके लिए किसानों को उत्साही बनाने तथा प्रशिक्षित करने की ओर जागरुक भी है । दरअसल देश के अधिकांष क्षेत्रों में पारंपरिक एवं पुरानी परिपाटी पर खेती की जा रही है । इसका सीधा प्रभाव कृषि उत्पादों की उत्पादकता पर पड़ रहा है । इस परिपाटी को बदलना होगा । किसान एक खेत में फसल को उगाते हैं । उसके बाद उस फसल को काट कर खेत को साफ कर उसे जोता जाता है । उसके बाद दूसरी फसल को लगाया जाता है । किसान इस बीच 6 माह या अधिक समय तक की प्रतीक्षा करता है । इस परिपाटी को बदलना होगा और समझना होगा कि खेतों में मौसमी और बेमौसमी फसलों को साथ-साथ किस प्रकार उगाकर हम किसान के साथ प्रदेश और देश की आर्थिकी को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं । कृषि समाधान इसके लिए किसानों को कब किस फसल की बुआई कौन से खेत में होनी है और उसके साथ ही दूसरी फसल की बुआई भी साथ ही कैसे करें, जागरुक करेगा। उन्नत बीजों की उपलब्धता एवं हर मौसम की फसलों को साथ-साथ उगाने से किसानों को लाभ होगा । मृदा जांच के बाद ही खेतों का वर्गीकरण किया जा सकता है ताकि खेतों की मिट्टी की जांच के आधार पर उसमें फसलें उगाई जा सके । कृषि समाधान इस पर मृदा जांच से लेकर फसल की बुआई के विकेन्द्रीकरण तक कृषि उत्पादक संघों को सहयोग करेगा ।
22. फसल की वितरण व्यवस्था का सरलीकरण
समस्या के रुप में बताया था कि किस प्रकार खेतों से संपर्क सड़क का न जुड़ा होना किसानों की मेहनत पर पानी फेर देता है । इसके लिए किसान की खेती को सबसे पहले संपर्क सड़कों से जोड़ना और उसके बाद परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करना है। सामान को वाहनों तक ले जाना और वाहनों का मार्किट तक उत्पादों का पहुंचाना चुनौती है । किसान की मेहनत तो खेतों से फसलों को घर और घर से सड़क तक ले जाने में ही खप जाती है । उसके बाद बिचौलिए कितनी कीमत लगाते हैं, वाहन चालक कितने पैसे पर किलोेग्राम ले लेते हैं, यह किसानों को पता नहीं होता । जो पैसा मार्केट से मिल गया उसी मे खुश रहना पड़ता है । इसके लिए एक पारदर्शी व्यवस्था का इजाद अभी तक नहीं हो पाया है । कृषि समाधान किसानों को पहले तो खेतों से जोड़ने के लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन की मदद लेने के लिए योजना बनाएगा । फसल उत्पादों को खेतों से सीधा मार्केट तक ले जाने के लिए कृषि उत्पादक संघों को सीधे तौर पर इसमे शामिल किया जाएगा । मांग अनुसार संघ एक स्थान से दूसरे स्थान पर उत्पादक संघ को ही उत्पादों को मुहैया करवाएगा। किसानों को सीधे तौर पर उनकी फसल की लागत के अनुसार पैसे घर पर ही प्रदान करेगा । इससे वाहन चालकों, बिचौलियों और आढ़तियों के चंगुल से किसान की मेहनत को मुक्त करवाया जाएगा । मार्केट का उपरोक्त बताया गया प्रारुप किसानों के द्वारा किसानों के लिए ही होगा । मांग अनुसार उत्पाद उठाए जाएंगे । किसानों को फसलों के दाम घर पर ही मिले । किसान को इस चिंता से भी मुक्ति आवश्यक है कि फसल तो उगा ली अब से मार्केट में न जाने क्या और किस हिसाब से मिलेगा । यह पूरी तरह से कृषि समाधान की ज़िम्मेवारी होगी ।
कम शब्दों में बड़ी बात
कृषि समाधान खेत, किसान और खुशहाली के लिए देश में किसानों को सुविधा प्रदान करने वाला माध्यम है । यहां सब कुछ विकेन्द्रीकृत है यानी किसान स्वयं ही इसके संचालक होंगे। किसानों की मेहनत का अधिकतर भाग किसान ही प्राप्त करें, ऐसी सोच के साथ पारदर्शी योजना कृषि समाधान लाना चाहता है । किसान की निराशा को समाप्त करके उसे आत्मस्वावलंबी बनाने, एक स्थाई रोजगार को उसके खेत-खलिहानों से जोड़ने तथा किसान की आत्महत्या जैसी विभीत्स घटनाओं पर रोक लगाकर उसे खुशहाल ज़िंदगी देने के लिए प्रयास ही इसकी मूल अवधारणा है । ये पंक्तियां इसके लिए पर्याप्त होंगी कि …….
हो उन्नत कृषि, संपन्न राष्ट्र और खुशहाल किसान
आपकी समस्याओं में आपके साथ है कृषि समाधान
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